मानवेत्तर रचना -पंचतत्व
एक बार ब्रह्माण्ड में बड़ी उथल -पुथल हो गई तब ,बह्मा जी ने सोचा -कि पंचतत्वों को बुलाकर मंत्रणा की जाय। पृथ्वी ग्रह सबसे जादा पीड़ित दिखाई दे रहा था। कहीं धूप अधिक थी ,कहीं अग्नि अपना प्रचंड वेग दिखा रही थी। कहीं बरसात हो रही थी तो ,कहीं पहाड़ क्रोधित होकर सरक रहे थे। कहीं तेज हवाओं के साथ समुद्री तूफ़ान आ रहे थे। कहीं तो पृथ्वी स्वयं ही विकराल रूप धारण किये थीं। कहीं अंतरिक्ष से उल्कापिंड गिरकर तबाही मचा रहे थे। इंसानों और समस्त प्राणियों के जीवन आधार पंचतत्व अग्नि ,जल ,वायु ,पृथ्वी और आकाश सभी क्रोधित होने लगे।
मकर संक्रांति को बह्मा जी ने बैठक बुलाई ,सभी पंचतत्व पधार गए। अपना आसन ग्रहण कर बैठ गए। तब ,बारी -बारी से सभी की व्यथा -कथा सुनी गई। पृथ्वी के बर्फीले पहाड़ सबसे पहले बोल पड़े -सर !! इंसानों ने हमारा जीना दूभर कर दिया है ,पहले हम वर्ष भर सभी को जल प्रदान करते थे ,अभी तो हमारा अस्तित्व ही संकट में है। हमारे सीने पर भी इंसान छेद कर ,हमें घुलने पर मजबूर कर रहे हैं। उनसे कहिये हमारे पास न आएं।
फिर जल देव बोले - सर !! पूरी पृथ्वी पर जहाँ देखो हमें बांधकर रख दिया है। हमारा काम तो निरंतर बहना है ,तभी हमारी पवित्रता बनी रहती है। जब ,जल को एकत्र कर देंगे तो ,प्राण वायु नष्ट होने से जल का अस्तित्व ही ख़तम होता है। पृथ्वी की ऊर्जा का निकास अबरुद्ध होता है तभी तो ,जलाशय बिखर जाते हैं।
अब ,अग्नि देव बोले -ब्रह्मदेव जी !! पृथ्वी पर हमारा संतुलन इंसानों ने ही बिगाड़ा है। दुनियां भर के जंगल जल रहे हैं , इंसानों ने अप्राक्रतिक अग्नि के भण्डार बना रखे हैं ,जहाँ कभी भी अग्नि धधक जाती है। वायु देव इसमें हमारा सहयोग करते हैं। वायु देव बोले -सर !! हमारे रास्ते रोक दिये हैं ,ऊँची -ऊँची इमारतें बना दी हैं। जंगलों में भी मार्ग नहीं बचे ,पहाड़ काट दिए हैं। समुद्री मार्ग भी रोक देते हैं तब ,तूफ़ान आते हैं। हम क्या करें ?
तभी पृथ्वी जी बोलीं -बह्मदेव जी !! मेरा सीना इंसानों ने छलनी कर दिया है ,खोद -खोद कर घायल कर दिया है। मेरे आश्रय में रहने वालों को सिर्फ भोजन चाहिए ,घर चाहिए वो सब बहुत था लेकिन जान संख्या विस्फोट कर मुझे कम्पित कर रहे हैं। ध्यान ,योग ,तप अब ,इनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखता जबकि प्राचीन ऋषि -मुनि तपस्या करते हुए ही सब कुछ पा गए।
आकाश तत्व कहाँ चुप रहने वाले थे ,सर !! इंसान ही प्राण वायु को समाप्त कर रहे हैं। जंगल काटे जा रहे हैं ,पृथ्वी को खोखला कर रहे हैं। अग्नि छोड़ते हुए विमान आकाश में प्रक्षेपित करते हैं। हम सब असंतुलित हो रहे हैं। आप ही बताये हम क्या करें ? बह्मदेव ने कहा -आप लोग शांत रहे। इंसान एक दिन अपनी गलती की सजा अवश्य भोगेगा। इस तरह सभा का समापन हुआ और सभी लोग अपनी राह चले गए।
रेनू शर्मा