Friday, August 2, 2024

मानवेत्तर रचना -पंचतत्व  

 एक बार ब्रह्माण्ड में बड़ी उथल -पुथल हो गई तब ,बह्मा जी ने सोचा -कि पंचतत्वों को बुलाकर मंत्रणा की जाय। पृथ्वी ग्रह सबसे जादा पीड़ित दिखाई दे रहा था। कहीं धूप अधिक थी ,कहीं अग्नि अपना प्रचंड वेग दिखा रही थी। कहीं बरसात हो रही थी तो ,कहीं पहाड़ क्रोधित होकर सरक रहे थे। कहीं तेज हवाओं के साथ समुद्री तूफ़ान आ रहे थे। कहीं तो पृथ्वी स्वयं ही विकराल रूप धारण किये थीं। कहीं अंतरिक्ष से उल्कापिंड गिरकर तबाही मचा रहे थे। इंसानों और समस्त प्राणियों के जीवन आधार पंचतत्व अग्नि ,जल ,वायु ,पृथ्वी और आकाश सभी क्रोधित होने लगे। 

मकर संक्रांति को बह्मा जी ने बैठक बुलाई ,सभी पंचतत्व पधार गए। अपना आसन ग्रहण कर बैठ गए। तब ,बारी -बारी से सभी की व्यथा -कथा सुनी गई। पृथ्वी के बर्फीले पहाड़ सबसे पहले बोल पड़े -सर !! इंसानों ने हमारा जीना दूभर कर दिया है ,पहले हम वर्ष भर सभी को जल प्रदान करते थे ,अभी तो हमारा अस्तित्व ही संकट में है। हमारे सीने पर भी इंसान छेद कर ,हमें घुलने पर मजबूर कर रहे हैं। उनसे कहिये हमारे पास न आएं। 

फिर जल देव बोले - सर !! पूरी पृथ्वी पर जहाँ देखो हमें बांधकर रख दिया है। हमारा काम तो निरंतर बहना है ,तभी हमारी पवित्रता बनी रहती है। जब ,जल को एकत्र कर देंगे तो ,प्राण वायु नष्ट होने से जल का अस्तित्व ही ख़तम होता है। पृथ्वी की ऊर्जा का निकास अबरुद्ध होता है तभी तो ,जलाशय बिखर जाते हैं। 

अब ,अग्नि देव बोले -ब्रह्मदेव जी !! पृथ्वी पर हमारा संतुलन इंसानों ने ही बिगाड़ा है। दुनियां भर के जंगल जल रहे हैं , इंसानों ने अप्राक्रतिक अग्नि के भण्डार बना रखे हैं ,जहाँ कभी भी अग्नि धधक जाती है। वायु देव इसमें हमारा सहयोग करते हैं। वायु देव बोले -सर !! हमारे रास्ते रोक दिये हैं ,ऊँची -ऊँची इमारतें बना दी हैं। जंगलों में भी मार्ग नहीं बचे ,पहाड़ काट दिए हैं। समुद्री मार्ग भी रोक देते हैं तब ,तूफ़ान आते हैं। हम क्या करें ? 

तभी पृथ्वी जी बोलीं -बह्मदेव जी !! मेरा सीना इंसानों ने छलनी कर दिया है ,खोद -खोद कर घायल कर दिया है। मेरे आश्रय में रहने वालों को सिर्फ भोजन चाहिए ,घर चाहिए वो सब बहुत था लेकिन जान संख्या विस्फोट कर मुझे कम्पित कर रहे हैं। ध्यान ,योग ,तप अब ,इनके लिए कोई महत्त्व नहीं रखता जबकि प्राचीन ऋषि -मुनि तपस्या करते हुए ही सब कुछ पा गए। 

आकाश तत्व कहाँ चुप रहने वाले थे ,सर !! इंसान ही प्राण वायु को समाप्त कर रहे हैं। जंगल काटे जा रहे हैं ,पृथ्वी को खोखला कर रहे हैं। अग्नि छोड़ते हुए विमान आकाश में प्रक्षेपित करते हैं। हम सब असंतुलित हो रहे हैं। आप ही बताये हम क्या करें ? बह्मदेव ने कहा -आप लोग शांत रहे। इंसान एक दिन अपनी गलती की सजा अवश्य भोगेगा। इस तरह सभा का समापन  हुआ और सभी लोग अपनी राह चले गए। 

रेनू शर्मा 
































  

आवारगी 

 काशी लड़कों के साथ गलियों में कभी कंचे खेलती थी ,कभी ढ़ेरी फोड़ खेलती उसके साथ भाई भी खेलता था। माँ ,कभी भाई को नहीं टोकती थी कि तू क्यों जाता है लेकिन काशी हमेशा डांट खाती थी। काशी का जबमन होता खेल में मस्त हो जाती। उसे पढ़ाई का महत्व्  ही नहीं पता था। इतना जानती थी कि स्कूल जाने से अखबार पढ़ना और खत पढ़ना -लिखना सीख जाएगी। काशी का मन घर पर नहीं बल्कि बाड़े में जाकर दोस्तों के साथ खेलने में जादा लगता था। कभी दादी ,चाची ,कभी ताई के घर मस्ती करती रहती थी। 

काशी को जो कोई भी बुलाने जाता ,वो भी खेलने लग जाता। माँ ,फिर तीसरे व्यक्ति को भेजती थी जाओ ,काशी को बुलाकर लाओ। माँ ,छड़ी लेकर दौड़ती थी ,काशी इधर -उधर भागती  रहती। माँ ,हो गया न ,अब नहीं जाउंगी। दूसरे दिन फिर वही होता। काशी मानो अपने अस्तित्व को समझती ही नहीं थी। वापस आई ,खाना खाया और सो रही। उसे बचपन का अधिक कुछ याद नहीं। बारह बरस के बाद का सब याद है। माँ को एक तरीका सूझा -काशी को घर के काम करने का बोल दिया गया। तुम बर्तन साफ़ करोगी ,पानी भरकर रखोगी। झाड़ू भी लगानी होगी। अब ,काशी घर पर बध गई। 

काशी जब बड़ी हुई तो ,पता चला पूरे खानदान  में आठ -दस लड़कियां हैं। सभी मिलकर खेलती और पढ़ाई करती थीं। काशी माँ को दिखा रही थी माँ !! मेरे हाथ पर ये कड़ा सा हो गया है। हेण्डपम्प चलाने से हुआ होगा। ठीक हो जायेगा। काशी की आवारगी अब ,घर के भीतर शुरू है। जब ब्याह का समय आया तब भी काशी खेलते हुए रश्में पूरी कर रही थी। अभी उसकी बेटी अनुजा सोलह बरस की ही हुई है जब रात को पार्टी से लौटकर आती है तब ,काशी सोचती है माँ ,तो मुझे आवारा कहती थी ,अब ,ये अनुजा क्या कर रही है ? 

अनुजा को देखकर काशी डर जाती है क्योंकि वो जमाना कुछ और था ,अभी  हालात कुछ भिन्न हैं। काशी झूले पर बैठी कभी मुस्कराती और कभी आंसुओं से माँ को याद करती है। काशी को लगता है हमारे घर की हर खिड़की ,दरवाजा ,दीवार ,पेड़ बच्चों को पहचानते थे लेकिन अभी के बच्चे खेलते ही नहीं हैं। अनुजा फोन पर अधिक समय निकालती है। काशी इसी को आवारगी समझती है ,क्या पता आज का बचपन यही होगा ?

रेनू शर्मा 























    

Wednesday, July 31, 2024

गलत रास्ता  

 इस बार की छुट्टियों में सुनक ने परिवार के साथ घूमने का प्रोग्राम बनाया। सोचा गाड़ी से ही चलेंगे ,पीछे सीट पर यश के लिए सुलाने की व्यवस्था भी करली। गाड़ी में जरुरत का सामान रखा और चल दिए। दिल्ली तक जाना था। पहले की अपेक्षा इस बार सड़कें बहुत अच्छीं थीं। गाड़ी फर्राटेदार चल रही थी ,फ्लाईओवर पर मजा आ रहा था। रानी का काम था रास्ते के बोर्ड पर ध्यान रखना। कभी जी पी एस भी गलत रास्ता बता देता है। कई बार कोई इंसान नहीं दिखाई देता जिससे पूछो कि भाई ! हाइवे किधर से आएगा ? 

एक ढाबा दिखाई दिया जहाँ दो तीन गाड़ियां कड़ी थीं ,सुनक ने चाय की इच्छा जाहिर की और गाड़ी  दी। कोई बोर्ड न देख पाने के कारण थोड़ा कन्फूजन हो गया। पास ही पुलिया पर कुछ लड़के मस्ती कर रहे थे ,सुनक ने उनसे रास्ता पूछा तो बोल दिया इधर चले जाय। अभी ग्वालियर निकला ही था। जाने क्या हुआ ,सुनक ने गाड़ी  बताये रास्ते पर डाल दी। अभी कुछ दूर ही चले थे कि एक चरवाहा दिखाई दिया ,रानी ने उसी से रास्ता पूछा -भैया !! हमारे पास छोटा बच्चा है ,उन लड़कों ने बताया यहाँ से हाइवे पकड़ लेना। 

बहन !! ये रास्ता तो ,जंगल में जाता है। आप वापस लौट जाओ। उलटे हाथ पर जो रास्ता जाता है ,वही हाइवे जायेगा। जब तक वापस आये ,वहां कोई लड़के नहीं थे। सुनक और रानी आगरा रोड पर आकर ही निश्चिन्त हो पाए। अब ,नेट भी काम कर रहा था। चरवाहा बता रहा था -वही लड़के आपको आगे लूट लेते। पुलिस चौकी भी बनी है। दूसरी गाड़ी जो आपके रास्ते पर जा रही है ,उसे फॉलो करते रहें। रात में हमेशा हाइवे पर ही रहें। कोई शॉर्ट कट न अपनाएँ। 

एकांत में कभी न रुकें ,कुछ नियम पालन करें तो सड़क मार्ग भी उत्तम हो सकता है। रास्ता हमेशा बाजार में पूछें। आगरा पहुंचकर रानी ने राहत की सांस ली। रात को यहीं रूककर आगे का सफर तय किया गया। 

रेनू शर्मा 
























 

फिल्मों का जादू   

 एक समय था जब ,शहर की गलियों में रिक्शे के दोनों ओर फिल्म के पोस्टर लगे रहते थे और लाउडस्पीकर पर रिकार्ड चलता था -बहनो भाइयों !! आपके शहर में कल शुक्रवार से भगवान टाकीज में शोले फिल्म लग रही है। रिक्शेवाला धीरे -धीरे रिक्शा चलाता हुआ जाता था। कभी किसी गली में ,कभी किसी मोहल्ले में। कुछ फ़िल्मी छोकरों की भीड़ रिक्शे के साथ -साथ ही चलती थी। उन्हें जाने क्या मजा आता था ?

जब ,शुक्रवार आता था तब ,न्यूज़ पेपर में भी देख लिया जाता था कि कहाँ कौन सी फिल्म लगी है और निश्चय किया जाता था कब ,देखनी है। पूरा घर तैयार हो जाता था ,सभी को देखनी होती थी। तब ,भाई को बोला जाता था ,भाई !! टिकिट जुगाड़ कर। टिकिट दो रूपये से शुरू होती थी ,शायद एक रूपये भी होती होगी। 

एक बार हमारे गांव के करीब बीस लोग फिल्म मदर इंडिया देखने राजामंडी जाने को तैयार हो गए। एक दो लड़कों को लाइन पर लगाया गया ,टिकिट तो मिल गई लेकिन भीड़ के कारण अंदर जाना मुश्किल हो गया। गली पतली सी थी ,उस पर भी चाट पापड़ी वाला वहीँ खड़ा होता था। फिल्म शुरू हो गई थी क्योंकि विज्ञापन निकल गए थे। तब ,विज्ञापन देखने का अपना मजा था। आज तो चिढ़ लगती है। 

माँ का  हाथ पकडे भीतर पहुँच गए ,किसी तरह अँधेरे में सीट मिल गई। कहानी आज तक जहन में जिन्दा है। सभी को बता दिया था कि बाहर पुस्तक भण्डार पर आना होगा फिर घर के लिए लास्ट बस मिलेगी ,कोई छूटना मत। रात में राजामंडी का बाजार शबाब पर था ,जमकर भीड़ थी। पास ही पानी पूरी वाला खड़ा था माँ ,फ़ैल गई अभी कहानी है। हम सभी ने चाट का मजा लिया फिर बस के लिए गए। उस समय किसी के पास फोन नहीं होता था। किसी तरह रात तक घर पहुँच सके। 

माँ ,उस दिन बहुत खुश थी। बच्चे तो स्कूल चले जाते थे लेकिन माँ रोज ही काम करते हुए फिल्म देखती रहती थी। कभी मुस्कराती ,कभी गुस्सा करती ,कभी हंसती थी। माँ के साथ फिल्म काजल भी देखी थी। तब से हमारा हीरो ही बदल गया। छुट्टियों में बच्चे उछल -उछल कर डांस सीखते थे। समय के साथ सब कुछ बदल गया। फिल्मों का जश्न मनाना अब दिखाई नहीं देता। 

रेनू शर्मा 
































  

थप्पड़ 

 वीनू सातवीं क्लास में सेंट विन सेंट में पढता था। उसके साथ दक्ष ,पियूष ,ललित और रूद्र भी स्कूल से वापस आने पर खेलने जाते थे। उन सभी का पसंद का खेल था छत पर पतंग उड़ाना। वीनू चुपके से दरवाजा खोलता और छत की तरफ दौड़ जाता। घर के सभी लोग उस समय आराम कर रहे होते। उन दिनों किसी को भी सूरज की तेज धूप की कोई परवाह नहीं रहती थी।

वीनू की पतंग और मांझा दक्ष अपने पास रखता था क्योंकि वीनू को डर था घर में माँ को पता चलेगा तो ,चाकरी सहित पतंग छत से ही फैक दी जाएगी। दक्ष बगल वाले घर में ही रहता था। रविवार को तय था ,सबकी नजरों के सामने जाते थे। दूसरे दिन होमवर्क करने पर माँ डांट भी लगाती थी। माँ को पता था वीनू रोज छुपकर पतंग उड़ाने जाता है लेकिन ये भी जानती थी कि पढ़ाई कर लेता है। इसलिए माँ उसे कुछ नहीं कह पाती थी। 

एक दिन स्कूल से आकर वीनू सीधे ही छत पर जाकर दोस्तोँ के साथ पतंग उड़ाने लगा ,खाना खाने तक नहीं आया तब ,माँ को बहुत गुस्सा आया। वो ,चुपके से ऊपर गईं और पतंग की डोर काट दी। वीनू की कटी पतंग हवा में लहरा रही थी ,एक झन्नाटेदार थप्पड़ वीनू के गाल पर पड़ा तो सारे दोस्त घबरा गए ,गाल की लालिमा बता रही थी कि क्या फ़ोर्स से थप्पड़ पड़ा था। वीनू को इस बात का दुःख ज्यादा था कि माँ ने पतंग काट दी। 

माझा चकरी सहित वीनू को दीवार की तरफ मुंह करके खड़े होने की सजा मिली। दूसरे भाई -बहन समझ जाए ,धूप में खेलने की सजा क्या होगी ? आधा घंटे बाद वीनू का मुंह आंसुओं से भीगा दिखाई दिया। माँ से वादा किया अब ,धूप में नहीं खेलूंगा। फिर खाना दिया गया। किशोरावस्था होती ही ऐसी है कि पांच दिन बाद दोस्तों को देखने ही छत पर पहुँच गया। वीनू ने सोच लिया था ,आज माँ ऊपर आई तो ,बोल दुंगा मैं ,उड़ा नहीं रहा ,देख रहा हूँ। बच्चे इतना भी नहीं समझते कि समस्या खेलने से नहीं धूप से है। 

दूसरे दिन लू लगने से वीनू की तबियत खराब हो गई ,अस्पताल ले  जाया गया ,सभी बच्चे डर गए और अपनी पतंग ,मांझा छुपाकर रख दिए। छत पर जाना सभी का बंद हो गया। सबसे छोटा रूद्र जाकर वीनू का हाल जानकर सबको बताता था। बचपन की मस्ती के साथ  बड़ों का कहना भी मान लेना चाहिए। 

रेनू शर्मा 

































 

 

Tuesday, July 30, 2024

झगड़ा ख़तम 

  रामू और चम्पू झगड़ते हुए अपने दादा ह्वेन के पास  गए ,बच्चे बहुत देर तक उन्हें अपने को निर्दोष बताने का प्रयास करते रहे। जब दादा संतुष्ट नहीं हुए तब ,वे लोग अपने -अपने दोस्तों को लेकर दादा के पास गए। दादा ह्वेन ने कहा -चलो आज झगड़ा ख़तम ही करते हैं। 

रामू अपने दोस्तों से मंत्रणा कर रहा था -दोस्तों !! हम हार नहीं मानेंगे ,क्योंकि चम्पू ने गलत दांव लगाया था। जब विरोधी पार्टी जमीन पर हाथ या पांव मारने लगे तो समझना चाहिए कि दूसरा मौका चाहिए। चम्पू ने ध्यान ही नहीं दिया। मैं ,हार नहीं सकता। उसने मुझे गलत तरीके से हराया था। सभी लोग रामू का समर्थन कर रहे थे। 

सभी बच्चे शाम को दादा व्येन की व्यायाम शाला में आकर कुश्ती सीखते थे। योग -ध्यान करते थे और कब्बडी भी खेलते थे। चम्पू भी अपने दोस्तों के साथ मंत्रणा करने में व्यस्त था। देखो दोस्तों !! खेल में जब जिसको मौका मिलता है तब ,दांव लगा लेता है। इसमें कोई दोष नहीं। रामू को कमर से पकड़ा और गिरा दिया। उसने एक बार भी हार नहीं मानी। दोस्तों ने चम्पू का साथ दिया। 

दूसरे दिन सभी लोग दादा ह्वेन के पास एकत्र हो गए। एक टेबल रखी ,कुर्सी पर दादा बैठ गए ,चम्पू और रामू को बुलाकर बताया -देखो तीन बार मौका मिलेगा। जो हारेगा वो ,विरोधी पार्टी को क्षमा करेगा। वादा करेगा कि खेल में कोई बेईमानी नहीं होगी। सभी दोस्त मिलकर खेलेंगे। सभी ने दादा की बात का समर्थन किया। मेज पर रामू और चम्पू की तर्जनी ऊँगली की कुश्ती होनी थी। इसी उंगली को उठाकर झगड़ा करते हो ,अब जो उंगली नहीं झुका पाया वो ,दूसरा प्रयास करेगा। 

खेल शुरू हुआ कोई हार -जीत नहीं हुई ,दुबारा शुरू किया गया। फिर भी कोई नहीं जीता। दादा ने खेल ख़तम किया। दोनो की दोस्ती कराई। देर तक तालियां बजती रहीं। सभी ने मिलकर दैनिक व्यायाम किया। दादा ह्वेन की व्यायाम शाला फिर से फूलों जैसी महकने लगी। 

रेनू शर्मा 
























 

फयातेन 

  दुनियां के पूर्वी छोर पर एक गांव था लयातु ,वहां के लोग चावल की खेती करते थे। घने जंगलों से फल लाकर बाजार में बेच देते थे। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण खेत ऐसे लगते थे मानो कोई नदी बहती हो। पहाड़ों के ऊपर एक मांगो नाम की झील थी ,वहां से किसान पानी की पूर्ति करते थे। 

लयातु के  मोठे कपडे पहनते थे। हफ्ते में एक दिन स्नान करते थे क्योंकि ठण्ड बहुत थी। गांव के लोग धीरे -धीरे  आदि हो गए क्योंकि उनके पास धन आने लगा। उनके घर लकड़ी से बने होते थे , करीब हजार लोग ही वहां रहते थे। घर के भीतर ही भोजन बनाने की व्यवस्था रहती थी। लयातु के लोग नदी से मछलियां पकड़ते और सुखाकर रखते थे जब ,बर्फ पड़ती तब उपयोग में लाते थे। एक बार गांव में सूखा पड़  गया। दूर -दूर  बादल नहीं दिखाई दे रहे थे। एक बौद्ध भिक्षु वहां निवास करने आये ,गांव वालों ने उनसे प्रार्थना की हमारा गांव फिर से हरा -भरा हो जाए। 

भिक्षु ने बताया कि आप लोग शिकार करते हो ,वृक्ष काटते हो ,तो बादलों के देवता फया तेन आपसे नाराज हैं। भिक्षु येन ने बताया कि खेतो के पास , किनारे पेड़ -पौधे लगाओ। जितना आवश्यक हो उतना शिकार करो। धान पैदा करो ,परिश्रम करो। प्रकृति का सम्मान करो। नदी किनारे एकत्र होकर  फया तेन से क्षमा -याचना की। येन ने सुखी लकड़ी मंगाई ,कुछ  पत्तियां डालकर जला दीं। सभी लोग घुटनों के बल बैठ गए ,प्रार्थना करने लगे। अग्नि की ज्वाला ऊपर  आकाश तक फ़ैल गई। शाम तक बादल छा गए  नदियों में जल बहने लगा। सुबह येन कहीं जा चुके थे। बारिश हो थी। 

रेनू शर्मा