फयातेन
दुनियां के पूर्वी छोर पर एक गांव था लयातु ,वहां के लोग चावल की खेती करते थे। घने जंगलों से फल लाकर बाजार में बेच देते थे। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण खेत ऐसे लगते थे मानो कोई नदी बहती हो। पहाड़ों के ऊपर एक मांगो नाम की झील थी ,वहां से किसान पानी की पूर्ति करते थे।
लयातु के मोठे कपडे पहनते थे। हफ्ते में एक दिन स्नान करते थे क्योंकि ठण्ड बहुत थी। गांव के लोग धीरे -धीरे आदि हो गए क्योंकि उनके पास धन आने लगा। उनके घर लकड़ी से बने होते थे , करीब हजार लोग ही वहां रहते थे। घर के भीतर ही भोजन बनाने की व्यवस्था रहती थी। लयातु के लोग नदी से मछलियां पकड़ते और सुखाकर रखते थे जब ,बर्फ पड़ती तब उपयोग में लाते थे। एक बार गांव में सूखा पड़ गया। दूर -दूर बादल नहीं दिखाई दे रहे थे। एक बौद्ध भिक्षु वहां निवास करने आये ,गांव वालों ने उनसे प्रार्थना की हमारा गांव फिर से हरा -भरा हो जाए।
भिक्षु ने बताया कि आप लोग शिकार करते हो ,वृक्ष काटते हो ,तो बादलों के देवता फया तेन आपसे नाराज हैं। भिक्षु येन ने बताया कि खेतो के पास , किनारे पेड़ -पौधे लगाओ। जितना आवश्यक हो उतना शिकार करो। धान पैदा करो ,परिश्रम करो। प्रकृति का सम्मान करो। नदी किनारे एकत्र होकर फया तेन से क्षमा -याचना की। येन ने सुखी लकड़ी मंगाई ,कुछ पत्तियां डालकर जला दीं। सभी लोग घुटनों के बल बैठ गए ,प्रार्थना करने लगे। अग्नि की ज्वाला ऊपर आकाश तक फ़ैल गई। शाम तक बादल छा गए नदियों में जल बहने लगा। सुबह येन कहीं जा चुके थे। बारिश हो थी।
रेनू शर्मा
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