थप्पड़
वीनू सातवीं क्लास में सेंट विन सेंट में पढता था। उसके साथ दक्ष ,पियूष ,ललित और रूद्र भी स्कूल से वापस आने पर खेलने जाते थे। उन सभी का पसंद का खेल था छत पर पतंग उड़ाना। वीनू चुपके से दरवाजा खोलता और छत की तरफ दौड़ जाता। घर के सभी लोग उस समय आराम कर रहे होते। उन दिनों किसी को भी सूरज की तेज धूप की कोई परवाह नहीं रहती थी।
वीनू की पतंग और मांझा दक्ष अपने पास रखता था क्योंकि वीनू को डर था घर में माँ को पता चलेगा तो ,चाकरी सहित पतंग छत से ही फैक दी जाएगी। दक्ष बगल वाले घर में ही रहता था। रविवार को तय था ,सबकी नजरों के सामने जाते थे। दूसरे दिन होमवर्क करने पर माँ डांट भी लगाती थी। माँ को पता था वीनू रोज छुपकर पतंग उड़ाने जाता है लेकिन ये भी जानती थी कि पढ़ाई कर लेता है। इसलिए माँ उसे कुछ नहीं कह पाती थी।
एक दिन स्कूल से आकर वीनू सीधे ही छत पर जाकर दोस्तोँ के साथ पतंग उड़ाने लगा ,खाना खाने तक नहीं आया तब ,माँ को बहुत गुस्सा आया। वो ,चुपके से ऊपर गईं और पतंग की डोर काट दी। वीनू की कटी पतंग हवा में लहरा रही थी ,एक झन्नाटेदार थप्पड़ वीनू के गाल पर पड़ा तो सारे दोस्त घबरा गए ,गाल की लालिमा बता रही थी कि क्या फ़ोर्स से थप्पड़ पड़ा था। वीनू को इस बात का दुःख ज्यादा था कि माँ ने पतंग काट दी।
माझा चकरी सहित वीनू को दीवार की तरफ मुंह करके खड़े होने की सजा मिली। दूसरे भाई -बहन समझ जाए ,धूप में खेलने की सजा क्या होगी ? आधा घंटे बाद वीनू का मुंह आंसुओं से भीगा दिखाई दिया। माँ से वादा किया अब ,धूप में नहीं खेलूंगा। फिर खाना दिया गया। किशोरावस्था होती ही ऐसी है कि पांच दिन बाद दोस्तों को देखने ही छत पर पहुँच गया। वीनू ने सोच लिया था ,आज माँ ऊपर आई तो ,बोल दुंगा मैं ,उड़ा नहीं रहा ,देख रहा हूँ। बच्चे इतना भी नहीं समझते कि समस्या खेलने से नहीं धूप से है।
दूसरे दिन लू लगने से वीनू की तबियत खराब हो गई ,अस्पताल ले जाया गया ,सभी बच्चे डर गए और अपनी पतंग ,मांझा छुपाकर रख दिए। छत पर जाना सभी का बंद हो गया। सबसे छोटा रूद्र जाकर वीनू का हाल जानकर सबको बताता था। बचपन की मस्ती के साथ बड़ों का कहना भी मान लेना चाहिए।
रेनू शर्मा
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