फिल्मों का जादू
एक समय था जब ,शहर की गलियों में रिक्शे के दोनों ओर फिल्म के पोस्टर लगे रहते थे और लाउडस्पीकर पर रिकार्ड चलता था -बहनो भाइयों !! आपके शहर में कल शुक्रवार से भगवान टाकीज में शोले फिल्म लग रही है। रिक्शेवाला धीरे -धीरे रिक्शा चलाता हुआ जाता था। कभी किसी गली में ,कभी किसी मोहल्ले में। कुछ फ़िल्मी छोकरों की भीड़ रिक्शे के साथ -साथ ही चलती थी। उन्हें जाने क्या मजा आता था ?
जब ,शुक्रवार आता था तब ,न्यूज़ पेपर में भी देख लिया जाता था कि कहाँ कौन सी फिल्म लगी है और निश्चय किया जाता था कब ,देखनी है। पूरा घर तैयार हो जाता था ,सभी को देखनी होती थी। तब ,भाई को बोला जाता था ,भाई !! टिकिट जुगाड़ कर। टिकिट दो रूपये से शुरू होती थी ,शायद एक रूपये भी होती होगी।
एक बार हमारे गांव के करीब बीस लोग फिल्म मदर इंडिया देखने राजामंडी जाने को तैयार हो गए। एक दो लड़कों को लाइन पर लगाया गया ,टिकिट तो मिल गई लेकिन भीड़ के कारण अंदर जाना मुश्किल हो गया। गली पतली सी थी ,उस पर भी चाट पापड़ी वाला वहीँ खड़ा होता था। फिल्म शुरू हो गई थी क्योंकि विज्ञापन निकल गए थे। तब ,विज्ञापन देखने का अपना मजा था। आज तो चिढ़ लगती है।
माँ का हाथ पकडे भीतर पहुँच गए ,किसी तरह अँधेरे में सीट मिल गई। कहानी आज तक जहन में जिन्दा है। सभी को बता दिया था कि बाहर पुस्तक भण्डार पर आना होगा फिर घर के लिए लास्ट बस मिलेगी ,कोई छूटना मत। रात में राजामंडी का बाजार शबाब पर था ,जमकर भीड़ थी। पास ही पानी पूरी वाला खड़ा था माँ ,फ़ैल गई अभी कहानी है। हम सभी ने चाट का मजा लिया फिर बस के लिए गए। उस समय किसी के पास फोन नहीं होता था। किसी तरह रात तक घर पहुँच सके।
माँ ,उस दिन बहुत खुश थी। बच्चे तो स्कूल चले जाते थे लेकिन माँ रोज ही काम करते हुए फिल्म देखती रहती थी। कभी मुस्कराती ,कभी गुस्सा करती ,कभी हंसती थी। माँ के साथ फिल्म काजल भी देखी थी। तब से हमारा हीरो ही बदल गया। छुट्टियों में बच्चे उछल -उछल कर डांस सीखते थे। समय के साथ सब कुछ बदल गया। फिल्मों का जश्न मनाना अब दिखाई नहीं देता।
रेनू शर्मा
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