Thursday, January 11, 2024

सन 1971  

हल्के हरे रंग के बेस रंग पर गुलाबी और नीले फूल के कपडे से बनी फ्रॉक पहने बानी तब दस बरस की रही होगी ,माँ ने फुग्गे वाली बाजू बनाई थीं। पहले माँ ही सबके लिए कपडे सिलती थी। भाई की शर्ट ,बहन की फ्राक सब एक ही कपडे से बन जाते थे। बच्चों को पता ही नहीं था कि शहर में यही काम दर्जी करता है। स्वेटर भी माँ बना देती थी। इतनी शिद्दत से सलाइयों पर माँ की उँगलियाँ चलती थीं मानो साथ में जीवन का पिटारा भी खुलता -सिमटता जा रहा हो। बाबा का मफलर ,अपने लिए शॉल फिर पौंचो बनाने लगी। गर्मी में सफ़ेद समीज ,चड्डी और ए लाइन कुरता भी माँ बना डालती थी। हम ही भाई -बहन हैं आसानी से पहचान हो जाती थी। 

स्कूल से आकर ,नहाधोकर गांव का एक चक्कर लगाना बानी का हुनर था। देखना होता था कौन जगा हुआ है उसके साथ खेल शुरू होगा। घरों की छतें आपस में जुडी रहती थीं ,भीतर  से घर भी खिड़की -दरवाजों से महलों की तरह एक दूसरे से अलग नहीं थे। बच्चे दिन भर धमाचौकड़ी मचाते रहते थे। एक दिन बाबा गेट के बाहर लम्बी और कम चौड़ी जगह खुदवा रहे थे। उन्होंने बताया -जब रात में दुश्मन बॉम्ब छोड़ेगा तब हम यहाँ छिप जायेंगे। 

बानी को कुछ समझ नहीं आया ,सुना था युद्ध हो रहा है ,ब्लैकआउट भी होता है ,रात में कभी -कभी सायरन भी बजता है तो ,हमारा परिवार तो पच्चीस लोगों  का है तो ,ये कब्र जैसी जगह तीन चार ही क्यों ? पिताजी ने खिड़की पर काला कपडा लगा दिया था। आगरा प्रसिद्ध पर्यटन स्थल था क्योकि ताजमहल यहाँ की सुंदरता को बढ़ाता था। पहली बार बानी को समझ आया कि कोई पाकिस्तान देश है जो ,युद्ध कर रहा है। हमारे वीर सैनिक बहादुरी से लड़ रहे हैं। अखबार आता था लेकिन उस समय तक पढ़ नहीं पाती थी। 

बाबा तो ,खुदाई करवाकर चले गए लेकिन बानी खड़ी सोचती रही कि गांव भर में तो ,हजारों लोग हैं उनका क्या होगा ? क्या बाबा स्वयं जिन्दा रहना चाहते हैं। सबकी चिंता उन्होंने क्यों नहीं की ? अजीब सी चिंता लिए बानी घर आकर माँ से बोली -माँ बाबा कितने स्वार्थी हैं। पूरी कहानी सुना दी। बानी !! बड़ों के लिए ऐसे नहीं बोलते ,उन्होंने कुछ सोचा होगा और बात टाल दी। प्रतिदिन जहाजों के उड़ने की आवाजें भी आती थीं। शाम होते ही हमारे काम संपन्न हो जाते थे। ताजमहल घर के पास था तो ,हमारी चिंता अलग थी अब ,पिकनिक मनाने कैसे जायेंगे? एक बार बानी घूमते हुए बाबा के घर चली गई ,वहां तहखाना खाली  किया जा रहा था ,क्योकि उसमें गेहूं भरे जाते थे ,बानी को लगा मैं ,तो यहाँ रोज खेलने आती हूँ ,एक बार भी नहीं कहा कि यहाँ छिपने आ जाना। 

माँ ,को जाकर पूछ लिया -माँ हम लोग कहाँ छुपेंगे ? कहीं नहीं बानी ,हम सब यहीं रहेंगे। कुछ नहीं होगा। सब ठीक हो जायेगा। बस हमें रात को लाइट नहीं जलानी है। खोदी गए गड्डों पर बच्चे मस्ती करते हैं। आज जब युद्ध की आहट सुनाई देती है तब ,71 के दिन याद आते हैं। युद्ध किसी भी देश के लिए ठीक नहीं। हम बीस साल पीछे चले जाते हैं। 

















































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