Thursday, January 11, 2024

सारंगिया बाबा 

हाँ ,यही नाम था उनका सारंगिया बाबा ,वे ,कहाँ रहते थे ,कहाँ जाते थे किसी को नहीं पता ,बस गली में सारंगी की आवाज सुनाई देती थी। कोई चालीस पैतालीस की उम्र का युवा पुरुष ,जो रहन -सहन से पचास का लगता था। आँखों में गजब का तेज ,काली सफ़ेद दाढ़ी ,लम्बे बाल ,सफ़ेद कुरता घुटनों तक ऊँची धोती ,एक चादर ओढ़े रहते हैं। राजस्थानी खड़ाऊं पहने रहते हैं। कंधे पर एक झोला रहता है जिसमें आटा ,दाल ,चावल के लिए जगह है। सिर पर पगड़ी जैसी पहने रहते हैं। हमेशा इसी गेटअप में दिखाई देते हैं। 

दो तीन माह में एक बार बाबा !! अवश्य दिखाई दे जाते हैं। दूर से जब सारंगी की धुन सुनाई देती है तब ,माँ बैठक में आ जाती हैं। जा ,सुनयना !! रोक ले बाबा को ,पानी ला ,दौड़कर लोटा भरकर पानी लाती  है सुनयना। बाबा आज का सुनाओगे ? कछु नाय ,आज तो फ़िल्मी गीत सुनाऊँगो। टीक दोपहर में बाबा धुन बजाते हैं --बनवारी रे --जीने का सहारा तेरा नाम रे --  

बाबा का चेहरा लगातार देख रही थी ,बंद आखें शून्य में रुकी हुई थीं। संगीत की धुन अजब सम्मोहन सा बिखरा  रही थी। सारंगी के तारों पर उँगलियाँ घूम रही थीं। जब भजन खतम हुआ तो ,बाहर महिलाओं ,बच्चों की भीड़ जम गई। बाबा एक गाना सुना दो ,आप कहाँ से सीखते हो ? बाबा मुस्करा दिए किसी से नहीं सीखता। महिला बच्चे से कह रही थी जा ,घर से बाबा को कुछ लाकर दे तब सुनाएंगे। नहीं माँ ,ऐसा नहीं है आप बैठो ,सुना देता हूँ। माँ ने पूछा -बाबा कहाँ रहते हो ? कहीं नहीं ,जहाँ प्रभु बुला लें। थोड़ी देर में चावल का ढेर लग गया। माँ !! आज तो सब साथियों का भोजन बन जायेगा। बाबा ने बताया हम आठ साधू भिक्षाटन पर हैं ,हमारी साधना का अंग है भिक्षा। तभी हमारा अहम् और अज्ञान नष्ट हो पाता  है। सारंगी ईश्वर की आराधना के लिए बजाता हूँ। मेरे गुरु योगिराज जी ने मुझे सारंगी भेंट दी थी। मैं हमेशा भजन गाया करता था। बाबा ,अचानक चुप हो गए। चलता  हूँ माँ ! सुनयना बोल पड़ी कब आओगे ?सारंगी बाबा !!बेटी जल्दी आऊंगा ,बाबा गली तक जाते दिखे ,फिर अचानक गायब हो गए। 

हम लोग कुछ दिनों तक बाबा की बातें करते थे। सभी लोग अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए। सुनयना बी ए करने के बाद माँ ,से गप्पें मार  रही थी तभी सारंगी की धुन सुनाई देने लगी। माँ ,ने दरवाजा खोल दिया ,सुन तो लग वही रहे हैं। जा पानी ले आ। आश्चर्य से उधर देख रही थी तभी झक्क सफ़ेद दाढ़ी वाले बाबा दिखाई दिए। बाबा !! आइये बहुत दिनों बाद आना हुआ ? हाँ बाबा हंस दिए ,इस बार हिमालय पर अधिक समय लग गया। तुम नहीं समझ पाओगे। बाबा फिर हंस दिए। बाबा !! पहले लड्डू खा लो ,पानी पीओ ,फिर बात करते हैं। माँ !! बेटी का ब्याह करो ,जी बाबा। आज क्या सुनाओगे बाबा !! बाबा ने धुन निकाली अफसाना लिख रही हूँ ,परवाना लिख रही हूँ ,दिल बेकरार का ,आँखों में रंग भरके ,तेरे इन्तजार का। बाबा का वही आध्यात्मिक रूप था। आँखें बंद थीं। देर तक एक ही पक्ति बजती रही। बाबा !! आप कैसे याद करते हो ? हम तो ईश्वर को ध्यान करते हैं ,उन्हीं के लिए गाते हैं। शब्दों से क्या फर्क पड़ता है ? बाबा के झोले में चावल भर दिए ,बाबा मुस्करा दिए। जैसे ही माँ ,पलटीं बाबा अदृश्य थे। गली में कोई नहीं था। माँ को एक ज्योतिपुंज दिखा था ,बाबा फिर कभी नहीं आये। 

सुनयना अब साठ बरस की हो  चुकी है। सारंगी बाबा उसकी यादों में आज भी मधुर स्वर सुनाते हैं। 

















































 

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