Friday, January 12, 2024

 देवघर 
सिया और रवि ने कल देवघर जाने का निर्णय किया। दो जोड़ी कपडे रख लेते हैं ,रात में रुकना होगा ,खाना ,नाश्ता ,कुछ फल ,मेवे आदि रखकर सिया ने बैग तैयार कर लिया। ड्राइवर से बोलै हाइवे से चलना ,अच्छे ढाबे पर रोक लेना ,वहां खाना खा लेंगे। जी सर ,कहकर सनकी टिल्लू ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। पचास किलोमीटर चलने पर सिया कुछ फल निकाल लेती है। सामने टोलनाका आ गया ,दौनों सड़क किनारे के मनोहारी सीन देखते चले जा रहे हैं। सिया बोलती है अभी यहाँ के गांव उतने ही जवां हैं जितने साठ के दशक में होते होंगे। पुराने विशाल तने वाले बरगद के पेड़ ,मंदिर ,गांव में गाय ,भैस ,बकरी ,कच्चे घर ,छप्पर बैलगाड़ी सब कुछ वही। हरे -भरे खेत बड़े सुन्दर लग रहे थे। 
गांव के बुजुर्ग लोग और युवा भी सब सड़क किनारे ,मंदिर के टूटे चबूतरे पर ही ताश खेल रहे हैं। कोई नींद ले रहा है। खेतों में अधिकांश महिलाएं काम करती दिखाई दी। सभी युवा लोग फ़ोन पर व्यस्त दिखाई दिए। हम तो अपनी दु नियाँ में मस्त थे ,तभी टुल्लू को नाका दिखाई दिया उसने गाड़ी नेशनल हाइवे से स्टेट हाइवे पर डाल दी। उसे दोस्तों ने जो रास्ता सुझाया था वही पकड़ लिया। तीन बजने को था ,कोई ढाबा दिखाई नहीं दे रहा था। गांव ही गांव हमारा स्वागत कर रहे थे। जब  पूछा कि भाई ! बाजार नहीं दिख रहा तो बोला साब हम दूसरे रस्ते पर हैं। टुल्लू की मूर्खता के कारण खाने का समय निकल गया। बहुत मुश्किल से एक चाय की दूकान पर रोका और साथ लाये पराठे ,नमकीन खाया गया। 
रवि भी परेशान थे लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहे थे क्योकि अभी उसी के साथ वापस भी जाना था। हम दो घंटे देर से पहुँच पा रहे थे। अँधेरा होने के बाद हम पहुँच सके। सामान होटल में रखा और रिक्शे पर सवार होकर बाबा बैजनाथ के दर्शन करने चले गए। देव दर्शन के लिए प्रसाद लिया और सरस्वती मंदिर के सामने लम्बी लाइन में खड़े हो गए। तभी एक थाली में दिया जलाकर दस के नोट रखकर फर्जी पंडित वहां घूमने लगा ,तभी पंडित आपस में लड़ने लगे ,उसे भगा दिया। हर जगह इस तरह की हरकत देखने को मिल जाती है। 
तभी एक बन्दे ने बड़ा गेट खोल दिया ,भोले बाबा की जय के नारे लगने लगे। फर्श पर फिसलन थी ,हाथों में प्रसाद था ,ऊपर चढ़ने को सीढ़ी थीं ,लोग धक्का देने लगे ,बहुत मुश्किल से ऊपर पहुँच सके। छोटा सा सकरा रास्ता ,एक कमरा जहाँ बाबा बिराजे थे ,वहां भी पैसों का खेल  था। लेकिन बाबा के दर्शन कर हम लोग बाहर हो गए। बगल में ही देवी पारवती जी का स्थान था वहां भी दर्शन किये और हम रिक्शे से ही वापस आ गए। 
सुबह के लिए बाबा बासुकी नाथ के दर्शन करने थे खाना रूम पर ही मांगकर खा लिया। सुबह ग्रीन टी से नींद खुली ,सामान पैक कर रख दिया। बषुकि नाथ के रास्ता पूछने में भी टुल्लू ने नितांत मूर्खता का परिचय दिया। जब देर से पहुंचे तब ,वहां बाबा भोले नाथ की सवारी नादिया वहां घूम रहे थे। बहुत मस्त दर्शन किये। बाहर आकर सिया ने कुछ अचार खरीदे ,नाश्ते के लिए कचौड़ी ली ,फिर चल दिए। पता था ,ऐसा रास्ता खोजेगा कि  बाजार नहीं मिलेगा और न ढाबा मिलेगा। 
अभी टुल्लू को समझा दिया किसी  हालत में नेशनल हाइवे नहीं छोड़ना है। जी सर के बाद वही हुआ ,एक नया रास्ता पकड़ लिया। तीन बज रहा था ,खाने के लिए कुछ नहीं था ,सर्दी थीं तो अँधेरा जल्दी होना शुरू हो गया। अब ,टुल्लू ने ऐसा हाइवे चुना जो अभी बन रहा था। एक तरफ रास्ता था ,दूसरी तरफ बन रहा था ,लाइट नहीं थी। अगर  हो जाती तो हम कुछ नहीं कर सकते थे। वहां नेट भी नहीं चल रहा था। किसी से पूछ भी नहीं सकते थे ,कोई गाड़ी न आगे न पीछे। उसके बाद भी टुल्लू अपने निर्णय पर अडिग था। तभी रास्ते में मिलिट्री ट्रक दिखाई दिए ,वहां वर्दी पहने कुछ युवा थे ,गाड़ी रोककर रास्ता पूछा ,सिया की जान ही निकल गई। एक किलोमीटर आगे हाइवे था। फिर तो सिया ने खूब फटकारा ,गाड़ी क्यों रोकी ? यहाँ कौन सुनता हमारी आवाज ? फिर यकायक मुझे याद आया ड्राइवर का नाम। काटो तो  खून नहीं। मन्त्र जाप करते हुए हम रात ग्यारह बजे घर पहुँच सके। 
































































































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