Friday, July 5, 2024

पति की चाकरी  

 रीना अपनी सखी सुधा को फोन पर हाल -चाल बता रही है ,कब मिलोगी ? बहुत दिन हो गए चलो ,कॉफी शॉप पर मिलते है। नीले रंग की साडी पहनकर रीना सुन्दर लग रही है। माथे पर बड़ी सी बिंदी यही पहचान है रीना की। थोड़ी दूर ही सुधा भी ,सलवार सूट में लड़की ,मासूम लड़की लग रही है। कोई कह नहीं सकता दो बच्चों की माँ होगी। एक कौना पकड़कर बैठती है और कॉफी आर्डर करती हैं। सुधा , कुछ परेशान लग रही है ,धीरज उसके पति से झगड़ा हो गया है। 

यार !! शादी नहीं होती तो ,ठीक था। अभी तो पति को मना करो तो ,जरूर चाहिए। साले !पहले क्या करते थे ? इनसे रहा ही नहीं जाता। पत्नी दिन भर किन परिस्थितियों से गुजरी है ,इन्हें नहीं जानना। उसकी मानसिक ,शारीरिक पीड़ा का अहसास भी नहीं करना। जो पति ,  दिन में मासूम बने फिरते हैं ,लड़कियों को ताड़ते फिरते हैं वे ही ,घर में घुसते ही महान पुरुष बन जाते हैं। रात होते ही बिस्तर पर शैतान जाग जाता है ,औरत को फ़िक्र होती है ,बच्चे जाग जायेंगे या माँ सुनेगी तो ,क्या सोचेगी ?  लेकिन मर्द तो ,एक ही धुन सुनते हैं। 

अब ,तुम्हारी कथा पूरी हो गई ,तो चुप करो। इस तरह तो कोई हल नहीं निकलने वाला सुधा ! तुम्ही को समझदारी से काम करना होगा। यार ! अपने दोस्तों के साथ हो तो ,कोई सोच ही नहीं सकता कि ये इंसान ऐसा  भी होगा। मैं ,कहाँ चली जाऊं ? बच्चों के पास भी नहीं जा पाती क्योंकि माँ वहीँ सोती हैं।मन करता है कहीं भाग जाऊं। पर कहाँ ? देखो सुधा !! हर समस्या का हल बात चीत से ही निकलना चाहिए। मैं ,समझ रही हूँ। बेटा ! पहले तुम रिलेक्स हो जाओ। अपन कुछ समाधान निकलते हैं। 

आज ही तुम धीरज  से बात करो ,उसे समझाओ। बोलते हैं -मैं बाहर जाने लगा तो ,तुम लोग मुझे ही गलत कहोगे। अरे ! मैं भी तो जा सकती हूँ तब ,तुम्हारे पास क्या जवाब होगा ? बच्चों के लिए तो ,सोचना ही नहीं है।देखो -अभी संवेदनाओं का रोल नहीं है बस सम्भोग। हम दोनो जीवन की जटिलतम समस्या का समाधान खोज रहे थे। तभी , फोन आ गया  -माँ की तबियत खराब हो रही है ,जल्दी आओ। सुधा ने पर्स उठाया और चली गई ,फिर मिलते हैं। 

हजारों महिलाएं इस तरह की समस्या को झेलती हैं ,कुछ अपने को समझा लेती हैं ,कुछ बिखर जाती हैं ,कुछ अलग हो जाती हैं। उनके पति उन्हें ,पत्नी नहीं बल्कि स्त्री चारिका समझते हैं ,उन्हें लगता है कि हमारी खिदमद के लिए इन्हें लाया गया है। आजीवन बंदनी की तरह रहे। उसकी कोई दोस्त न हो ,माँ का घर तो छूट  है। सुधा जैसी स्त्रियां अपने वजूद के लिए संघर्ष करती रहती हैं। बेगुनाह होकर भी कारावास ही भोगती हैं। 

बेवजह के बंधनों से स्त्री को आजाद करना चाहिए। तभी शाम को दरवाजे की घंटी बजी ,रीना माँ जी से मिलने आई थी। पति भी साथ ही थे ,धीरज से मुलाकात हुई। रीना माँ को बता रही थी कि उसका पति रात को अधिक परेशान करता है ,आप कुछ उपाय बताइये ? क्या करूँ ? उनके सामने रोने लगी। बाकी लोग बाहर थे। माँ ,की आँखें भीग गईं ,क्या हमारा धीरज भी ऐसा करता होगा ?सोचते ही वे दुखी हो गई। बेटा !! समझदारी से काम लो। मैं ,धीरज से बात करती हूँ ,वो तुम्हारे पति को समझा देगा। ठीक है माँ जी। 

रीना बड़ी सफाई से माँ  को सारी बातें बता गई ,जब सब लोग चले गए तब , माँ ने धीरज को अपने कमरे में बुलाया था। पता नहीं ,क्या बात हुई। आज धीरज कुछ  बदले हुए लगे। सुधा कुछ  दिनों तक माँ की सेवा में रही। रीना पूछ रही थी -सुधा माँ ने कुछ बताया तुम्हें क्या ? नहीं तो। लेकिन धीरज बदले से लग रहे हैं। चलो ,मिलते हैं किसी  दिन। अपना ध्यान रखना। 

रेनू शर्मा 









































 























 

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