सोलह बेटियों का भाग्य
माँ ,भी किसी की बेटी होती है लेकिन अपनी बेटी को वो भी ,पराया धन ही समझती है।हजारों प्रतिबंध लड़कियों पर ही होते हैं ,लड़कों को कभी नहीं समझाया जाता तुम्हें कैसे रहना चाहिए ? बाप -दादा लड़कों को तो अपनी जागीर मानते हैं ,आगे वे ही तो ,बदला लेंगे ,वंश बढ़ाएंगे। बेटी की उम्र पर निगाह रहती है कब ,बड़ी हुई ब्याह करो। पढ़ाई और जॉब तो अब ,जरुरी हुआ है।
दूसरे शहरों में जाकर पढ़ाई और जॉब करने वाले बच्चे अब ,छोटे बच्चे नहीं रहे। उनकी अलग दुनिया है जिसमें डांस बार ,क्लब ,पार्टी सब जुड़ा है। माँ -बाबा नहीं जानते उनके बच्चे कहाँ ,क्या कर रहे हैं ? क्या पहले की बेटियां सही थीं या आज की बेटियां ठीक हैं ? कहना मुश्किल है। हम यहाँ सोलह बेटियों की बात करेंगे जो ,अपने हालातों से लड़ीं हैं एक ही बाखर में रहकर। बेटी आज भी दोराहे पर खड़ी है।
सुबोना --
सन १९३० की बात है ,ब्राह्मण संपन्न परिवार में बेटी का जन्म हुआ ,आंशिक खुशियां मनाई गई। जब ,दाई ने बताया कि बेटी पैदा हुई है तो ,चाचा ने आँगन में जाकर थाली बजाई ,जिससे गांव वालों को पता चल जाय कि बच्चा हो गया है। सुबोना माँ ने नाम दिया ,पहला बच्चा स्वस्थ पैदा हुआ था। हर साल सुबोना आगे होती गई क्योंकि लड़के भी घर की शोभा बढ़ाने लगे थे। बच्चों विशेष रूप से लड़कों को बाहर पढ़ने भेज दिया गया। शहर भी बाहर माना जाता था। सुबोना घर पर ही मास्टर से पढ़ती रही।
बारह बरस की सुबोना माँ के साथ घर के काम में हाथ बांटती रही।गाय का ख्याल रखना ,खाना बनाना ,मसाले साफ़ करना सुबोना ही करती थी। पानी लाने के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता था तो ,वो काम भी सुबोना कर लेती थी। अठारह बरस ब्याह करने की उम्र थी लेकिन आठ बच्चों की चिकचिक में वो उम्र भी निकल गई। न माँ को होश रहा ,न पिता ने चिंता की। माँ जिद करती तब ,सुब्बो के लिए रिश्ता खोजा जाता पर बात निष्फल हो जाती। सुब्बो की उम्र एक साल और बढ़ जाती। छब्बीस बरस की हुई तब ,एक किसान परिवार में रिश्ता हुआ ,सुब्बो चली गई।
सम्मिलित परिवार में हर पल चिल्ल -पौं मची रहती थी। पहली संतान बेटी आ गई ,सुब्बो को कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि माँ के घर बच्चे रखने की आदत थी। धीरे -धीरे पता चला यहाँ संपत्ति के बंटवारे को लेकर कुछ अन -बन रहती है। अमीरी का ग्राफ नीचे आता गया क्योंकि सभी को रहीसी दिखाने का शौक था। सुब्बो दूसरी बार बनी तब ,भी बेटी ने जन्म लिया। पति बीमार हुए और अधिक समय तक साथ नहीं रह पाए। सुब्बो की हर दिन नई शुरुआत होने लगी।
सुब्बो ने अठारह की उम्र तक बड़ी बेटी का ब्याह कर दिया। परिवार वालों की नजर खेत पर गई और सुब्बो को बोला गया ,राधा का ब्याह भी करो ,बेटियां हिस्सेदार न बने ,इसके लिए जतन होने लगे। सुबोना कभी -कभी पीहर चली जाती थी ,महीना भर रहकर आ जाती। राधा भी ब्याह दी गई पर सुब्बो ने अपना अधिकार नहीं छोड़ा ,गांव में रहती रही।
शीलोना --
शीला दो भाइयों के बाद पैदा हुई ,माँ ने क्या सोचा होगा ,नहीं पता। शायद घर में बच्चे आते रहें यही प्रथा होगी ? शीला को भी घर पर ही मास्टर पढाने आता था। पढ़ने के लिए कोई मनाही नहीं थी। घर के काम तो करने ही थे। माँ तो ,दूसरे ही काम पर लगी थी। शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ ब्याह ही था। पहले की तरह माँ , बाबा से कहती रही बेटी का ब्याह करना है लेकिन बाबा को और भी काम रहते थे। शीला भी हर बार एक बरस बड़ी होती गई। ऐसा नहीं कि संपन्न घरों की बेटियां अवसाद की शिकार नहीं होती ,शीला इसका उदहारण थी। अठारह की जगह अठ्ठाइस की उम्र होना उस काल में अपराध था। कभी माँ से झगड़ जाती , भाभी से। यही होता ,प्रतिदिन। न सखी ,न सहेली। काम और अपना कमरा ,बस। एक दिन ब्याह का दिन भी आ गया।
शीला माँ -बाबा के घर दूध और दही के बीच पली थी ,एक सरकारी अधिकारी के घर निभाना मुश्किल हो गया। पति थोड़े उग्र थे ,ससुर जी पंडित थे तो ,बंदिशें तो होंगी ही। पीहर की आजादी ससुराल जाने पर ही पता चलती है। संयुक्त परिवार में निभाना सीखा ही नहीं था। यहाँ भी तो ,भाभी उसका भोज्य बनती थी। माँ ,को बार -बार शीला कहती रही ,मुझे नहीं रहना यहाँ। गर्भवती हुई तो ,काम नहीं कर सकी। पति की ज्यादती का शिकार भी होती रही। जब बेटी पैदा हुई तो ,भाई के साथ वापस घर आ गई ,हमेशा के लिए।
कई बार प्रयास किया गया कि शीला अपने घर चली जाय लेकिन वो नहीं गई। माँ ,को इतना बुरा नहीं लगता जितना घर के अन्य सदस्य दुखी हो जाते हैं। वही ,कलेश शुरू हो गये ,कभी भाई से झगड़ा ,कभी भाभी से। जब माँ -बाबा नहीं रहे तब ,शीला अकेली हो गई। बाबा ने एक बार भी नहीं सोचा कि बेटी के नाम कोई खेत कर देते ,न घर में हिस्सा दिया फिर भी पीहर के लिए समर्पित शीला को भरोसा था कि भाई , उसकी बेटी को पढ़ा देंगे और ब्याह भी कर देंगे। शीला जहाँ थी ,वहीँ खड़ी रह गई। पैतृक संपत्ति का अंश भी उसे नसीब नहीं हुआ। बेटी को बड़ा होते देखती रही।
बिबोना ---
घर में छोटी होने के कारण थोड़ी सी नकचढ़ी है ,बाबा को बोला मुझे पढ़ना है तो ,स्कूल जाने दिया , कॉलेज भी गई। क्योकि तब तक ,कुछ सुविधाएँ होने लगीं थीं। ब्याह की चिंता तो ,बाबा को न पहले थी और न अब है। बीबो अभी पच्चीस बरस की है लेकिन अवसाद की लकीरें दिखाई देने लगीं हैं। गांव भर में कोई सखी -सहेली नहीं है ,जमींदार घरों की बहु -बेटी छोटे घरों में नहीं जाती। भाभियाँ तो काम करने की मशीन हैं। माँ ,अब बूढ़ी होने लगी है ,बीबो को ही समझा देती है।
बाबा , किस तरह के प्राणी हैं बेटी की उम्र उन्हें दिखाई नहीं देती। बोबो की अपनी समस्यायों को कोई समझना नहीं चाहता ,चाहे भाई हो या भाभी। उसका असर तो होगा ही। घर में छोटे बच्चे हैं तो ,अकेलापन नहीं लेकिन जो खालीपन है उसका क्या ? बीबो की पढ़ाई का भी कोई मतलब नहीं ,जॉब तो कर नहीं पायेगी। माँ -बाबा इस दुनियां को अलविदा कर गए। किसी तरह भाई ने बीबो का रिश्ता तय किया ,लड़का आठ बरस छोटा था ,अच्छी नौकरी थी ,घर भी अच्छा मिला। बीबो ससुराल चली गई।
बाबा की दौलत के टुकड़े -टुकड़े हो गए लेकिन लड़कियां खाली हाथ वीराने में भटकने को मजबूर हो गई। कुछ समय बाद ही एक बेटा बीबो की दुनियां में आ गया। पति किसी और घर का पंछी बन गया। यहाँ बीबो की क्या गलती ? ब्याह ही उम्र के उस पड़ाव पर हुआ जहाँ ,सब ख़तम होने को होता है। दिल तो टूटा लेकिन घर बचा रहा। समझ नहीं आता बेटियां कहाँ गलत थीं ? क्यों इस पीड़ा से गुजरना पड़ा। बीबो अपने काम में व्यस्त रहती है। पति हार कर वापस आ गया है। दोनो की दुनियां अलग ही है। कोई साथ नहीं कि रात में पानी भी दे सके। बीबो ,समय की करवट देखने अभी जीवित है।
आभा --
बेटियों के एक और झुण्ड में पहला नाम है आभा ,सुन्दर ,गोरी ,काले लम्बे बाल ,पढ़ने में होशियार है। काकी दिन भर काम में लगी रहती है जब ,थक जाती है तब ,आँगन में चारपाई बिछाकर सो रहती है। काका जब ,घर में रहते हैं सब अपने काम करने में व्यस्त रहते हैं। आभा स्कूल साइकिल से जाती है ,कॉलेज जाने के लिए दस किलोमीटर लम्बा रास्ता तय करना होगा। पानी की समस्या अभी तक नहीं सुलझा सके ,कहने को जमींदार लोग हैं। घर के पिछवाड़े गाय बंधी रहती है ,बारी -बारी से सभी काम करते हैं।
काकी रसोई देखती है ,लेकिन लकड़ी गीली होने पर कागज से जलाकर ही चूल्हा जल पाता है। ब्याह की उम्र आकर चली गई। आभा ने बोल दिया है -मुझे शादी नहीं करनी। काका गुस्सा करते हैं तो ,बोल देती है -मुझे अपनी नुमाइश नहीं लगानी ,कभी टीपना नहीं मिलता ,कभी शिक्षा आड़े आ जाती है। लड़की ज्यादा पढ़ी -लिखी है। आभा गांव में जाकर किसी और के लिए चूल्हा नहीं फूंकना चाहती। काकी के कहने पर सोलह सोमवार के व्रत भी कर लिए लेकिन कुछ नहीं हुआ।
आभा ने निश्चय किया कि बच्चों को पढ़ाकर ही रहना है। एक दिन सामान बांधा और चली गई फिर गांव नहीं आई। आभा ऐसी सन्यासिन बन गई जिसे यंत्रणा के साथ बनाया गया। अजनवी लोगों के बीच बच्चों की दुनियां में रम गई। जो भी समय मिलता उसमें शिव जी की आराधना करती। समझ नहीं आता बेटियां ही इतनी उलझी हुई क्यों हैं ?
शोभा --
काका के घर लक्ष्मी की कोई कमी नहीं रही ,शोभा देवी आ गईं। सांवली -सलौनी ,पतली दुबली ,धार्मिक भावना लिए है। सुबह से घर के मंदिर में भगवान जी के श्रृंगार से लेकर ,सभी काम कभी ,भोग लगाना ,कभी आरती करना करती रहती है। काकी कभी नहीं सोचती बच्चे स्कूल जायेंगे तो ,खाना बना दूँ। बेटियां बड़ी हुई और चूल्हे की तरफ मुड़ गई। उन दिनों गांव में घर के काम करने के लिए किसी जाति विशेष को नहीं रख सकते थे। भेद -भाव चरम पर था।
इसके साथ भी यही हुआ ,ब्याह की उम्र व्रत ,उपवास ,पूजा -पाठ ,पढाई ,घर के काम करते हुए निकल गई। आभा की दुर्गति शोभा देख चुकी थी। इसलिए निश्चय किया कि आभा के साथ ही जाकर रहूंगी। बहन के प्रति संवेदना ,उसकी पीड़ा का अनुमान एक लड़की ही लगा सकती है।काकी को समझा दिया मेरे लिए कोई प्रयास मत करो। घर में माता -पिता की लापरवाही बच्चों को जिद्दी और बेबाक बना देते हैं। मैं ,आभा के साथ ही रहूंगी।
शोभा ने जॉब के लिए एप्लाय किया और आभा के साथ जाकर टीचर बन गई। अब ,हजारों बच्चों की माँ बन वहां रहने लगी। जो भी समय मिलता तब भी ,बच्चों को पढ़ाती रहती थी। पूरी तरह से अपने को समर्पित कर दिया। एक दूसरे की सहारा बन रह रहीं हैं।
रम्भा ---
-काकी की मुशीबतें ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थीं। एक और देवी रम्भा आ गई ,बहनों ने ही नाम दिया क्योंकि सुन्दर थी। रम्भा नाम उसके लिए सही था। बारहवीं तक पढ़ने के बाद रम्भा का मन पढ़ाई से हट गया। बहनों ने समझाया कि पढ़ाई ही तेरी आजादी का सहारा है लेकिन उसे समझ नहीं आया। रम्भा सोचती थी दीदी लोग ,पलायन कर गई हैं। जीवन से हार गई हैं। कैसे रहेंगी अकेली। जब ,समय निकलता गया तक ,रम्भा ने घर के काम के साथ ,ताई के घर में शरण ले ली। वहां ,ताई का काम करती ,गप्पें मारती ,भाइयों के साथ मस्ती करती और जब मन होता अपने घर आ जाती।
पंडितों के बताये व्रत ,उपवास सब करती रही लेकिन ब्याह की उम्र तो इनकी भी चली गई। किसी तरह से काका ने एक पंडित को ही लाकर खड़ा कर दिया। रम्भा को देखकर पंडित कुछ नहीं कह पाया क्योकि सुन्दर जो थी ,उसे लगा खानदानी लोग हैं कुछ तो दान करेंगे ही। काका ने ब्याह से पहले जो बोला वो लड़के ने नहीं करने दिया। रम्भा ससुराल तो ,चली गई लेकिन हमेशा के लिए पैसे की कमी के साथ जीना पड़ा।
शोभा ने कई बार समझाया था ,भाई तेरा साथ नहीं देगा लेकिन उसे लगता था पूरा घर मैं ,देखती हूँ तो ये लोग क्यों ऐसा करेंगे ? घर भर को रोटी बनाकर खिलाने वाली एक दिन रोटी के लिए तरस जाएगी ये उसे नहीं पता था। पंडित जो कमाता सब खर्च हो जाता। रम्भा एक बार काकी से मिलने आई और अपने अधिकार की बात करने लगी ,भाई ने सुना तो ,उसी पल जाने को बोल दिया। कैसे रिश्ते होते हैं ? एक पल में पराये ,या पैसा ही सब कुछ है। बहन के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं। खोखले रिश्तों की पैरवी करने वाली रम्भा खुद रिश्तों का शिकार बन गई।
माता -पिता अपने जीवित रहते बच्चों को समान अधिकार क्यों नहीं देना चाहते ? बेटियां भी तो खुद ने ही पैदा की होती हैं। जाने कैसी अभिशप्त जिंदगी जीने के लिए सारी बेटी इसी घर में आ रही हैं ? रम्भा कैंसर से पीड़ित होकर इस दुनियां को विदा कह गई ,पर किसी भाई -बहन ने उसका साथ नहीं दिया।
अम्बा --
काकी के घर में अम्बा का जन्म आखिरी बेटी सिद्ध हुआ। फिर न लक्ष्मी आई न गणेश। आठ बच्चों के लिए भी जाने कितने नहीं भी आये ,अम्बा आई तो विराम लग गया। अम्बा किसी से नहीं मिलती थी। बस अपने काम से काम। छोटी होने के कारण सभी पर दादागिरी दिखा देती थी। उन दिनों रम्भा घर संभाल रही थी। अम्बा काकी के लिए दीपावली पर गणेश -लक्ष्मी उकेर देती थी। कला में हाथ बैठ गया था। अम्बा ने ड्रॉईंग विषय लेकर पढ़ाई की और पेंटिंग बनाने लगी।
परिवार का अभिशाप तो अम्बा के साथ भी लगा था ,लोग सोचते थे ,इनकी बेटियों में ही कमी है। पैसा है तो क्या हुआ ? बेटे का ब्याह तो हो गया क्योंकि घर में पैसा था लेकिन बेटियों का उससे कोई वास्ता नहीं था। अम्बा घर से बाहर अपने काम के लिए रहने लगी। लोग इसी बात पर उंगली उठाने लगे। अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगाती और बेच भी देती। बहनों की पीड़ा और दर्द से अम्बा अछूती नहीं थी। बड़ी बहन ने समझा दिया अगर कोई तुम्हें पसंद करे तो हमें बताना ,ब्याह करा देंगे। कला से जुड़ा एक बंदा रामशरण जो दूसरी जाति से था ,अम्बा का ब्याह करा दिया गया।
उस घर से निकल जाने के बाद अम्बा और रामशरण बच्चों को पेंटिंग सिखाने लगे और धीरे -धीरे घर बना लिया। जब ,सब कुछ सामान्य हो गया तब ,बड़ी बहनों को भी साथ बुला लिया। हम सब साथ रहेंगे। काका -काकी इस दुनिया को छोड़ गए तब ,बेटियां भी पहुँच गई लेकिन भाई ने रुकने नहीं दिया। जो वापस आईं तो पीहर को भूलना पड़ा। अम्बा एक बच्चे को जन्म देकर खुशहाल जीवन जी रही है। बेटियां हमेशा त्याज्य क्यों होती हैं ? अम्बा ने घर की रीति को बदल दिया। स्वयं ही निर्णय लिया वो क्या चाहती है। तपकर कुंदन बनी बेटियां आज जी तो रहीं हैं।
वीथिका --
-बेटियों का तीसरा बड़ा झुण्ड ताई के घर आना शुरू हो गया। ताई के घर गाय -भैंस रहती थीं उन्हें देखने के लिए लड़कियां तो होनी ही चाहिए।बेटे तो राजसुख भोगने के लिए होते हैं। बेटियां ही होती हैं जो ,माँ -बाबा का ध्यान रखती हैं। वीथिका जब आई तो ,कोई खुश नहीं हुआ ,बेटा चाहिए था ,इतने धन के लिए कोई तो ,वारिस हो। वीथिका जब बड़ी हुई तो ,काम के लिए आवाजें आती थीं ,जरा पानी दो ,जरा खाना देदो ,जरा कपडे धो देना। वीथी जरा चाय पिला दे ,बर्तन साफ़ करले।
वीथी का पीछा नहीं छूटा काम से। कॉलेज भी जाने लगी। संपन्न परिवार होने का कोई मतलब नहीं होता ,भाग्य का किसी को नहीं पता कब ,क्या दिखा दे। पैसे से मन की शांति नहीं खरीदी जा सकती। वीथी के ब्याह की उम्र भी निकलने लगी। पिता ,अच्छा रिश्ता खोजते रहे लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है ? एक रिश्ता मिला और वीथी को बलात ब्याह दिया गया। शायद वो नहीं चाहती थी वहां ,ब्याह करना। कौन सुनता ?
जब ,मन साथ न हो तो ,रिश्ता कितना खींचा जा सकता था। वीथी की पति के साथ अनबन होने लगी ,कुछ नाराजी ,कुछ अपेच्छाएं सभी ने रिश्ते को निगल लिया। एक दिन वीथी घर वापस आ गई। पिता को बोल दिया अब ,नहीं जाउंगी। लेकिन वीथी गर्भवती होकर आई थी ,उसे पता नहीं था। जब ,बच्चे का जन्म हो गया तब ,वीथी ने पढ़ाई शुरू की और स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। बेटी की जगह यदि बेटा होता तब ,भी क्या यही होता ? वीथी ने भी खुद को इस परिवार के लिए एकाकी जीवन को ही चुना। माता -पिता बदलने से बेटियों के भाग्य नहीं बदले। घर भी अलग थे फिर भी समस्या वही थी। वीथी अपनी मेहनत से बच्चे को पढ़ा रही है।
गीतिका --
जब दूसरी बेटी घर में आई तो ,ताऊ ने कुछ न बोला क्योंकि ताई से कहने की हिम्मत न थी। बेटी कभी किसी को अच्छी नहीं लगी। उनको लगता था कि बेटे ही इस भवसागर से पार कराते हैं लेकिन आधी जिंदगी तो सेवा करते हुए बेटियां ही निकाल रही हैं। अक्षर ज्ञान की पाठशाला कॉलेज तक पहुँच गई। माँ ,बहुत ही सयानी थी ,जैसे ही बेटियां बड़ी हुईं ,घर के काम बराबर बाँट दिए ,तुम ये करोगी ,तुम ये। रोज का झगड़ा नहीं। बेटियां हमेशा समय और काम के बीच सामंजस्य बिठाती रहती थीं ,पढाई का समय भी रात को नसीब होता था।
जब ,कभी बच्चे आपस में झगड़ जाते तब ,ताऊ के सामने पेशी होती थी ,सजा के रूप में काम बढ़ जाता था। गीता संवेदन शील लड़की थी ,जब ब्याह की उम्र बीतने लगी तब ,पूरी तरह पूजा -पाठ में लग गई। उसने हजारों जप करते हुए समय निकाल दिया ,परिणाम यह हुआ कि रिश्ता हो गया ,उसे समझ आ गया था कि कर्मों का हिसाब -किताब चुकाना ही पड़ता है। इन दिनों एक बात अच्छी हुई कि गीतिका अवसाद से बच गई क्योंकि कुछ भी सोचने का वख्त ही नहीं था।
गीता एक बच्चे की माँ भी बन गई और सिल पर घिसी मेंहदी की तरह अब रंग भरी जिंदगी जी रही है। पिता का घर छोड़ने के बाद ही बेटियां खुश हो पाईं हैं।
रतिका -तूलिका ---
दोनो की बात एक साथ इसलिए हो रही है क्योंकि ये दोनो एक साल ही छोटी हैं ,बेटियों के आगमन पर कोई बंदिश नहीं लगी। सोचा होगा -कमवख्त को यहीं आना था। ताऊ -ताई के आराम पर कोई असर नहीं आया ,बड़ी बेटियां गईं तो , दूसरी तैयार थीं। ये वही बेटियां हैं जिनके पैदा होने पर कोई जश्न नहीं मना था। कब ,खाना देना है कब दवा देनी है पूरा हिसाब बेटी ही रख रही है। ताऊ को कितनी पतली और सिकी रोटी चाहिए ये बहु को नहीं बेटी को पता है।
दोनो बड़ी हो गईं ,पढ़ाई भी हो गई ,ब्याह के लिए कोई शीघ्रता नहीं। पता नहीं क्या बात है ? पिता कोई रूचि ही नहीं दीखाता ,माँ ,बोलती रहती है। जब ,रिश्ता आता है तब ,पूछ लेते हैं -भाई ! लहसन तो नहीं खाते ? अरे ! यार क्या बात करते हो ? घर से बाहर न निकलो तो ,व्यवहारिक ज्ञान नगण्य हो जाता है। जब ,ब्याह हुआ तो समझ ही नहीं आया ,कैसे तारतम्य बिठाना है ? पर अपने व्यवहार के कारण बेटियां घर बना पाईं। बेटी जीवन भर टुकड़े -टुकड़े कटती रहती है। न पिता का सहारा न ,पति का विश्वास। समय गुजर रहा है। ऐसे लगता है -मानो गाय को खूंटे से बाँध दिया हो।
मणि -
-चौथे झुण्ड में मणि ने प्रवेश किया ,सात माह माँ के गर्भ में रही और दुनियां देख ली। माँ ने नाजुक सी जान को कलेजे से लगा लिया लेकिन बाबा को लगा बेटा होना था। जबकि उन्हें पता होगा कि बेटा या बेटी होना क्या प्रक्रिया है। सांवली -सलोनी सी मणि जल्दी ही कुलांचें मारने लगी।मणि दस बरस तक कुछ याद न रख सकी। जाने क्यों उसे अचनाक पता चला ,घर में और भाई बहन भी हैं।
माँ ,जरुरत से ज्यादा संभलकर घर चलाती है। कभी दूध है तो ,कपडे नहीं। कभी कपडे हैं तो ,बेवजह की मस्ती नहीं। मणि घर का अधिकांश काम करती है जैसे अन्य बेटियां करती रही हैं। मणि एक बार स्कूल गई तो ,बाबा को नहीं पता अब ,कौन सी क्लास में गई है। पैदल स्कूल जाती है ,फिर साइकिल मिल गई। माँ ,थोड़े पैसे देती रहती है। बच्चों की जरुरत का ध्यान रखती है।
मणि को हमेशा दौड़ते भागते ही देखा गया ,कभी बाजार जाना है ,कभी किताब लानी हैं। जब काम से फुर्सत होती तो ,घर में सभी को खोजती और पता कर लेती कौन ,क्या कर रहा है ? मणि बहुत सरल हृदया है ,सभी रिश्तेदारों से हाल पूछ लेती है जो माँ के लोग हैं। माँ ,खुश तो रहती है पर मणि का घूमना उसे नहीं सुहाता। जब ,पढ़ाई पूरी हुई तभी रिश्ता तय हो गया और मणि ससुराल चली गई।
मणि हमेशा विद्रोह करती थी कि बेटा ही तुम्हारा अधिकारी क्यों है ,बेटियां क्यों नहीं ? माँ से लड़ भी जाती थी पर संपत्ति का अधिकार तो पिता के पास था। जब ,छोटी थी तब ,काकी से लड़ने खड़ी हो जाती थी। माँ को कभी नहीं बोलने दिया उनका काम मणि ही निबटा देती थी। मणि अब ,बच्चों की माँ बन गई है ,सब समझती है। संवेदनशील है तो बेटियों का दर्द भीतर तक महसूस करती है।
रत्ना
बड़ी नखरे वाली ,सुंदर ,होशियार ,थोड़ी चालाक रत्ना भी विधाता के विधान से अछूती नहीं रही। पढ़ाई तो चल ही रही है ,अपने पसंद के विषय को लेकर। काम करने पर मक्कारी करती है ,जब खाना बनाना हो तो ,सबको हड़का देती है। जब रत्ना के ब्याह के लिए बात होने लगी तो ,जन्म पत्रि मिलान ही नहीं हो पाता था। मणि के लिए जब खोज चल रही थी तब ,माँ ने कहा था यदि रत्ना की पत्री मिल जाय तो ,देख लो। रत्ना मणि से पहले ब्याह करने को भी राजी थी।
मणि सोचती थी ,इसने एक बार भी नहीं पूछा कि जीजी तुम तैयार हो या नहीं ? रत्ना की स्वार्थ परता सभी ने देखी। रत्ना छोटी बहनों से पढ़ाई के बदले काम करवा लेती थी। फिर पढ़ाने से मुकर जाती थी। अच्छे कपडे ,अच्छा खाना उसकी आदतें थीं। पांच बरस के बाद रत्ना का ब्याह हो पाया। अब ,अपने बच्चों का ध्यान रखती है लेकिन अपनी दुनियां में मस्त रहती है।
बीजा और चैना
दोनो एक दूसरे की पूरक हैं ,साथ पढ़ाई करना ,खेलना ,काम करना होता है। बीजा लम्बी ,सुन्दर ,काले घने लम्बे बाल ,और खिलाडी जैसे शरीर वाली है। चैना , पेंटिंग में रूचि रखती है। बाबा के अरमानों पर आघात लगा होगा जब ,दो बेटियां एक साथ आ गईं। उन्हें तो पता था कि जो अथाह संपत्ति उनके पिता छोड़कर जायेंगे ,उसके भोग के लिए पुत्र होना चाहिए। कभी बेटियों के सामने संपत्ति की चर्चा नहीं की ,उनसे कभी विचार साझा नहीं किये।
जब ,स्कूल में छुट्टियां होती तब ,समय काटने के लिए बच्चों के साथ खेलते थे ,कभी ताश ,कभी लूडो। माँ ,हमेशा कुछ न कुछ करने में व्यस्त रहती थीं। उन्हें खाली बैठना अच्छा नहीं लगता था। बहु भी आ गई ,माँ का हस्तक्षेप कम हो गया ,घर में चिक -चिक शुरू हो गई। बीजा और चैना का ब्याह भी साथ -साथ हो गया ,दोनो अच्छे घरों में गईं।
बाबा हर बेटी के ब्याह के साथ बेटी से मुक्त हो रहे थे। माँ ,अपने को एकाकी फील करती थी। इस खानदान में सदियों से यही होता आया है कि बेटी ब्याह दो फिर पीछे मुड़कर मत देखो। माँ ,जब बेटियों की याद करती है तब ,फोन कर लेती है। समय बदल गया है।
पणिका और नागिका -
-एक और बेटियों का जोड़ा ,कहने को घराना बड़ा है लेकिन घर के नियम या कानून अशिक्षित लोगों जैसे हैं।काकी को कभी नहीं सुहाता कि दूसरे बच्चे पढ़ -लिख लें। अपने बच्चे जाहिल निकले ,उन्हें संभालना नहीं आता बस दूसरों का काम बिगाड़ो ,यही बच्चों को सिखाती थी। काकी का काम था जादू -टोटके ,टोना करना। कभी ,हल्दी रोली दरवाजे पर बिखरा देती कभी ,सिंदूर डाल देती। बच्चे भी उनसे डरने लगे।
काकी ने पणि का ब्याह बीस बरस में कर दिया ,खानदान की रीति को तोड़ने का प्रयास किया। कौन कहता है कि लड़कियों का ब्याह नहीं होता ? बेटियां तो खुश थीं चलो -अभिशप्त होने की मोहर हट जाएगी। पणि जब ,ससुराल गई ,पति व्यसनी निकला। छोटी उम्र की लड़की शहर के लड़कों की आदतों को समझ ही नहीं पाई। मानसिक रूप से घायल हो गई। कभी ,माँ के पास आ जाती ,कभी पति के घर यही चलता रहा।
कुछ भी करने पर भी ,बेटियां सुखी नहीं हो पाई। नागिका जब पढ़ाई कर रही थी तब ही ,रिश्ता तय हुआ और अपने घर चली गई। पूरी आस्था के साथ घर संभाल लिया। यही समझ आया कि माता -पिता दोषी नहीं ,बेटियों की ग्रह दशा ही ऐसी थीं कि पति सुख नगण्य ही था।
सुचिता -
कोई नई बात तो नहीं थी ,पर काका हमेशा दूसरों को उपदेश देते थे ,पर अपनी बेटी पर नजर नहीं रख सके ,दूसरी जाति के लड़के के साथ ब्याह किया और चली गई। माता तो स्वीकार करती थी लेकिन काका को जरूर धक्का लगा। जब माँ बीमार हुई तब ,भाई ने बता दिया सुचिता आ गई लेकिन पिता की नजरों से बचकर वापस चली गई।
सुचिता रिश्तों की लिस्ट से आउट सी हो गई ,न किसी से बात करना ,न फोन करना। अपनी अलग दुनियां बनाकर पति के साथ विदेश भी चली गई।बेटियां अब ,अपनी मर्यादाएं लांघ रही हैं ,शायद अब ,खुश रह पाएंगी।
श्यामा -राधा --
-अब ,जब चौदह बेटियां अपना भविष्य देख चुकी हैं तब ,सभी को समझ आ चुका है कि माता -पिता कहाँ दोषी हैं ? उनकी कोशिश होती है लेकिन कितनी गंभीरता से करते हैं ये ,वे ही जाने। श्यामा और राधा दोनो का ब्याह हो गया है ,अपने घरों को देख रही हैं। बच्चे भी पधार गए हैं। लेकिन बच्चे अपनी जिद और अहम् के कारण ब्याह नहीं करना चाहते क्योंकि उन्होंने देखा है ,माता -पिता कभी साथ नहीं रहे ,साथ आये तो ,झगड़ा किया ,गलियां दी।
तीसरी पीढ़ी के बच्चे सुलझे हुए तो हैं लेकिन जॉब करने पर सिर्फ अपनी सुनते हैं। रिश्तों की उलझन में कभी अपने दोस्तों पर भी भरोसा नहीं किया ,नहीं तो कोई तो ,पसंद आया होता। अब ,बच्चे चालीस उम्र पार कर गए हैं। क्या कहा जाय ,ये भी अभिशप्त हैं ?
हम तीन पीढ़ी की बेटियों की समस्या को देख चुके हैं। आगे आने वाले समय में हो सकता है ,बेटियां इस अभिशाप से मुक्त हो जाय ,इसी प्रार्थना के साथ शुभकामनायें।
रेनू शर्मा
No comments:
Post a Comment