Sunday, July 7, 2024

शव यात्रा 
 पचपन बरस की
पूर्व संध्या पर ,
अनायास ही ,अहसास हुआ 
उसके भीतर ,कुछ 
टूट -फूट हुई है। 
अंतरतम में ,कम्पन सा 
होता हुआ लगा ,मानो 
कुछ चटक कर बिखर गया हो ,
उसको लगा ,कोई बलात 
वस्त्रापहरण कर जिस्म को ,
नोचकर किनारे फैंक गया है। 
जैसे ,किसी ने कह दिया हो ,
अब ,तुम्हारा कोई काम नहीं ,
अभी तक ,बर्दास्त किया जा 
रहा था ,कुछ वदन से छीलकर ,
उड़ा ,दिया गया हो ,वो 
शायद ,औरत की रूह थी। 
एक दिन जिसे देखकर खुश हुई ,
अचानक विषाद भर गया हो। 
कैसे ,किसी औरत की परतें 
उतारी जाती हैं ,समझ पाई। 
जिंदगी भर वजूद के लिए ,
तरसती स्त्री ,न पति अपना 
और न माँ का घर बचा। 
जिंदगी हवन करने के बाद ,
बस यूँ ही ,राख सी बिखर गई। 
पचपन बरस लग गए ,बस इतनी सी 
बात समझने में ,
ये ,शवयात्रा बड़ी लम्बी रही। 
रेनू शर्मा 





































  

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