उपेक्षा
हवाओं की तेज सरसराहट में ,
उसने मेरा हाथ थामा था।
सर्द मौसम की गिरफ़्त में भी ,
पसीना -पसीना हो फिसल गईं
उँगलियाँ।
झटककर पास सिमट गई थी।
तब ,वदन में बिजली सी ,
कौंध गई थी। जाने कहाँ से आया ?
मौसम ,न बादल थे ,न बरसात थी।
गुलाबी लबों की लाली सुर्ख ,
हो रही थी। उसने वादा किया था।
कभी ,जुदा न होंगे। अरसे बाद ,
धूप चटक गई थी।
न कभी ,बदली छाई ,न कभी
बिजली कड़की ,शब्दों की रिक्तता ,
पनपती रही ,प्रेम की पराकाष्ठा का
दम्भ ,भटकाता रहा।
धनुष उठाकर प्रत्यंचा साधने का ,
विवेक देखकर ,धूप में तारे गिन रही थी।
उपेक्षा को भुलाकर ,घर जोड़ रही थी।
दिल से एक नमीं सी रिस रही है।
फिर भी ,आखिरी पलों में ,उसके
स्पर्श का इन्तजार है।
हवाओं की तेज सरसराहट में ,
उसने मेरा हाथ थामा था।
सर्द मौसम की गिरफ़्त में भी ,
पसीना -पसीना हो फिसल गईं
उँगलियाँ।
झटककर पास सिमट गई थी।
तब ,वदन में बिजली सी ,
कौंध गई थी। जाने कहाँ से आया ?
मौसम ,न बादल थे ,न बरसात थी।
गुलाबी लबों की लाली सुर्ख ,
हो रही थी। उसने वादा किया था।
कभी ,जुदा न होंगे। अरसे बाद ,
धूप चटक गई थी।
न कभी ,बदली छाई ,न कभी
बिजली कड़की ,शब्दों की रिक्तता ,
पनपती रही ,प्रेम की पराकाष्ठा का
दम्भ ,भटकाता रहा।
धनुष उठाकर प्रत्यंचा साधने का ,
विवेक देखकर ,धूप में तारे गिन रही थी।
उपेक्षा को भुलाकर ,घर जोड़ रही थी।
दिल से एक नमीं सी रिस रही है।
फिर भी ,आखिरी पलों में ,उसके
स्पर्श का इन्तजार है।
रेनू शर्मा
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