Wednesday, July 17, 2024

जिंदगी  

 अजीब सी गुजर  रही है ,
न वो मान रहे हैं ,न हम 
रूठ  रहे हैं ,श्वांस जा रही है ,
श्वांस आ रही है। इस बंधन की 
डोर कहाँ अटकी है ? नहीं पता।
जिंदगी अजीब सा बर्ताव कर रही है। 
न भीतर कोई  अपना है ,
न बाहर कोई अपना है। 
न रिश्ता है ,न रिश्तेदारी है। 
जिंदगी अजीब सा तमाशा दिखा रही है। 
दोस्तों का हुज्जूम अपना सा लगता है ,
कोई ,अकेले में साथ नहीं ,
विचारों की भीड़ में , अकेली हूँ। 
कोई ,मुस्कराने को नहीं। 

रेनू शर्मा 







 









 

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