जिंदगी
अजीब सी गुजर रही है ,
न वो मान रहे हैं ,न हम
रूठ रहे हैं ,श्वांस जा रही है ,
श्वांस आ रही है। इस बंधन की
डोर कहाँ अटकी है ? नहीं पता।
जिंदगी अजीब सा बर्ताव कर रही है।
न भीतर कोई अपना है ,
न बाहर कोई अपना है।
न रिश्ता है ,न रिश्तेदारी है।
जिंदगी अजीब सा तमाशा दिखा रही है।
दोस्तों का हुज्जूम अपना सा लगता है ,
कोई ,अकेले में साथ नहीं ,
विचारों की भीड़ में , अकेली हूँ।
कोई ,मुस्कराने को नहीं।
न वो मान रहे हैं ,न हम
रूठ रहे हैं ,श्वांस जा रही है ,
श्वांस आ रही है। इस बंधन की
डोर कहाँ अटकी है ? नहीं पता।
जिंदगी अजीब सा बर्ताव कर रही है।
न भीतर कोई अपना है ,
न बाहर कोई अपना है।
न रिश्ता है ,न रिश्तेदारी है।
जिंदगी अजीब सा तमाशा दिखा रही है।
दोस्तों का हुज्जूम अपना सा लगता है ,
कोई ,अकेले में साथ नहीं ,
विचारों की भीड़ में , अकेली हूँ।
कोई ,मुस्कराने को नहीं।
रेनू शर्मा
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