शब हीन अर्थी
रिया सोच रही थी कभी -कभी शब्द मर्मान्तक पीड़ा पहुंचते हैं ऐसा ,सुना था लेकिन अभी अहसास हो रहा है।ये कैसा जड़ता से भरा प्रेम है जहाँ ,स्त्री को शब्दार्थों से मारा जा रहा है। रूह जार -जार हो बिखर रही है ,सब कुछ शरीर और आत्मा से निचोड़ा जा रहा हो। क्या यही जिंदगी का तोहफा था ,उसकी बच्ची भी यहाँ घायल थी। रिया को लगा क्या करू ?जो लोग मरने के बाद दो कदम साथ चलें। क्या ? अनजान मुसाफिर सी इस दुनियां से चली जाउंगी ,कोई आहट भी न सुन पायेगा।
क्या जानूं ,इस धरती से जाने से पहले कुछ और दास्ताँ बची हों। लम्बी -चौड़ी कहानियां बुन रही थी। अचानक ग्रहण लगेगा पता नहीं था। जिन सांसों का साथ जीने का सहारा था ,वही दूर खड़ा रिया की बेबसी मज़ाक उठा रहा था। झूंठी बातें ,अविश्वश्नीय निगाहें ,फरेव करती आत्मा रिया पर अट्टहास कर रही थी। अपने वादों और संस्कारों से बंधी रिया की जिस्म और आत्मा से लहू रिस रहा है। उसकी साँसें मानो गरल पी रही हों। व्यक्ति किसी से प्रेम नहीं करता ,सब धोखा और लालच है। रिश्तों का सौदा है। एक असमंजस सी स्थिति रिया को बेचैन कर रही है। कब से मेरी रूह को नोचता रहा ,खेलता रहा ,बहकाता रहा झमेलों में। रिश्तों की सुरंग में कई बार अकेला छोड़ दिया। रिया ,बदहवास सी एक -एक पल देख रही है जो ,भरम था। कोई किसी को महसूस नहीं करना चाहता ,एक खालीपन ,रीतापन ,शून्यता समय की पगडण्डी पर लिए जा रही है।
रिया विचारों की चादर को कभी खींचती ,कभी छोड़ती है। पुरुष कभी भी अपनी राह चुन सकता है। शब्दों की चाशनी में किसी को भी मकड़ी जैसा फांस सकता है। रिया के भीतर कम्पन हो रहा है मानो भूकंप आया हो। समय का इन्तजार है। तभी ,रिया करवट बदलने के साथ ही सपने से बाहर आती है।
रेनू शर्मा
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