Tuesday, July 16, 2024

आंसू  

आँखें धीरे -धीरे डबडबा रही थीं ,
भीतर के ज्वार की तरंगें 
रफ्ता -रफ्ता बढ़ रही थीं। 
एक दर्द के साथ ,कुछ 
निचुड़ा सा लगा ,तभी 
पलकों ने सहारा देकर ,
बूंदों के सागर को ,छलका दिया। 
कपोलों से लुढ़ककर ,सीने तक 
बिखर गए ,मानो सारी पीड़ा 
तिरोहित हो ,फिर से समां गई हो। 
सुख -दुःख ,साथी ,दोस्त सब ,
पल भर के अहसास हैं। 
आसक्ति को विरक्ति बनाते हैं आंसू। 

रेनू शर्मा 

















 

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