बलि
कस्बाई कॉलोनी के नुक्कड़ पर एक फोर्थ क्लास रेस्ट्रा में पार्टी चल रही है। किसी मित्र का जन्म दिन बड़ी खुशियों से मनाया जा रहा है। वहां ,बच्चे ,युवा ,वृद्ध सभी शामिल थे। दारु ,चखना ,ठंडा पानी और बहियाद दोस्त मंडली है। कोई गाना गा रहा है ,कोई डांस कर रहा है ,कोई बात -चीत में मस्त है। लाल गाउन वाली औरत बार -बार पुरुषों के बीच में आती है ,लहराकर चली जाती है। अपने को युवा समझने वाला साठ बरस का मर्द उन महिलाओं को छूकर ही निहाल हो रहा है।
बच्चे ,बुजुर्ग जब खाना मांगते हैं तब ,कुछ अजीब सा लगने लगता है। पीछे सोफे में धंसी अवनि जबसे धीरे -धीरे सुलग रही थी अब ,धधकने लगी है। लोगों के में जाकर विफर जाती है। एक बज रहा है ,आप लोगों को न बच्चों की चिंता ,न बुजुर्गों की। पीने में लगे हो। लड़खड़ाते पति बोल पड़े ,तुम किसी की पार्टी क्यों खराब हो ? कड़वी दारु पी सकते हो ,कड़वा सच नहीं सुन सकते। पत्नी मुंह बंदकर बैठे ,हसे कुछ बोले नहीं। अवनि बोल पड़ी -मुझे नहीं रहना यहाँ ,तुम रुको। मैं ,जाती हूँ। बच्ची का हाथ पकड़ा और अवनि निकलने लगी।
सब लोग सन्न रह गए ,कुछ लोग जल्दी से खाना खाया और निकल गए। जो पति स्वच्छंद औरतों के बीच मस्त रहा था ,वो भी शांत हो गया। कुछ महिलाएं ही फुसफुसा रहीं थीं ,बड़ी कड़क औरत है। दस मिनट बाद ही सब लोग घर आ गए। किसी ने किसी से बात नहीं की। अवनि ने सोच लिया था अब ,कोई पार्टी नहीं। तुम खुद जाओ। रात भर आंसुओं का सैलाव बहता रहा। सुबह पति ऐसे उठा जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। इस तरह रिश्तों की बलि कब तक चढ़ती रहेगी ?
रेनू शर्मा
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