जिम्मेदारी
आज मॉल में शगुन और सीता मिलने वाली हैं। लेकिन अंदर न जाकर वे लोग बाहर ही सीढ़ियों पर बैठकर बातें करना चाहती हैं क्योंकि मौसम बहुत मस्त है ,बादल छा रहे हैं ,हवा भी ठंडी हो गई है। सीता सीढ़ियों पर इन्तजार कर रही है तभी भागती हुई शगु दिखाई दे गई। अरे ! इधर आओ ,हाँ तुझे ! देर क्यों हुई ? क्या करूँ ,मनु स्कूल से आ गई थी तो खाना वगैरह देने में समय हो गया।पापा को बताकर कि मैं ,सीता से मिलने जा रही हूँ ,बोले -जाओ मैं ,देख लूंगा मनु को।
तुम बताओ क्या चल रहा है ? सब ठीक ही है। तुम उस दिन परेशान क्यों थीं ? क्या बताऊँ ?कभी -कभी अजीब सी समस्या से घिर जाती हूँ। शुभ की आदत है ,शाम को ऑफिस से आते ही मनु से दिन भर की कहानी सुनते हैं। वो तो बच्चा है ,सब बोलता रहता है ,माँ ने मारा ,डांटा कुछ भी। नहाते समय साबुन नाक में चला गया ,सर पर तेल लगा दिया। बस फिर क्या है ,दो मिनट नहीं लगते शुभ को चिल्लाने में। मुझे लगता है मानो बच्चे की आया हूँ ,उसका भला -बुरा मुझे समझ नहीं आता ,यही पिता परमात्मा हैं जो उसका ध्यान रखेंगे।
तुम अलग से शुभ से बात करो ,अरे ! सब करके देख लिया। मनु को भी समझ आ गया है कि अपने भाव कैसे बढ़ाने हैं। बहुत जिद्दी भी हो गया है। उसके बाद भी मुझे सुनना पड़ता है कि तुमने ही बिगाड़ा है मनु को। तुम चाहो तो पापा से बात कर सकती हो ,वे समझायेंगे शुभ को। शुभ को ही उसके करने दो। तब पता चलेगा। पढ़ाते समय भी संयम नहीं है। शुभ नहीं कर सकते। चलो कॉफी पी कर आते हैं। हाँ ,चलो।
शगुन! ऐसा नहीं है कि शुभ जैसे पिता और मनु जैसे बच्चे और नहीं होते ,बहुत लोग ऐसे होते हैं। अपने को ही सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। बस थोड़ी समझदारी से काम लेना होगा। हाँ ,मैं पापा से बात करती हूँ। चलो अब ,शुभ का समय हो रहा है आने का। फिर मिलते हैं। हाँ ,शांत रहना। ओके। एक दिन रविवार को पापा ने शुभ से बात की। उसके बाद कुछ बदलाव है। पापा ने मनु की जिम्मेदारी शुभ को दी है ,तुम ही पढ़ाओगे और रात को सुलाओगे। शगुन अब ,खुश है।
रेनू शर्मा
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