बासोड़ा
होली के एक हफ्ते बाद ही शीतला माता की पूजा बासी खाने से की जाती है।माँ ,एक दिन पहले ही पकवान बनाती थी। पूड़ी ,पूये ,हलवा ,खीर ,मठरी ,शकरपारे आदि। थाली में गोबर की गूलरी ,हल्दी ,चावल ,रोली और भोग रखा जाता था। एक बड़े लोटे में चीनी डालकर माँ ,लोटा पकड़ा देती और कहती जाओ ,पूजा करके आओ।
सुबह नहाकर ,पहला सवाल होता था ? कैसे करनी है पूजा ? जैसे दूसरे लोग करें ,वैसे ही तुम करती जाना। मेरे साथ माँ ,एक छोरी पद्मा को लगा देती थी,जा लोटा पकड़ लेना। पहले चावड मैया पर पूजा होगी फिर पीपल का पेड़। एक गुलरी रखती ,हल्दी चावल और भोग रखकर ,हाथ भी जोड़ने होते फिर आगे चलना होता। ये पूजा गांव के चारो ओर देवी -देवताओं को प्रणाम करने की प्रक्रिया ही होती थी। बूढ़ा बरगद कभी नहीं भूलना है ,उसके नीचे पहले से जाने कितने देवता विराजमान हैं।
वट सावित्री की पूजा भी माँ ,के साथ करने जाती थी। वट के आस -पास कच्चे धागे से हजारों महिलाओं की इच्छाएं बंधी हुई थी ,आगे कमला स्वीपर का घर था। वहां भी महिलाएं पूजा कर रहीं थीं। कमला सोच रही होगी जो लोग हमारी छाया से भी दूर रहते हैं वे आज ,चबूतरा पूज रहे हैं। आगे एक गूलर के पेड़ के नीचे भी पूजा हो रही थी। औरतें भजन गाती जा रहीं थीं। आधा घंटे बाद काछी पाड़ा और धोबी पाड़ा होते हुए हम लोग सड़क पर एक मंदिर में विराजीं देवी माता के पास पहुँच गए।
वहां ,पूजा करने के बाद जहाँ होली जली थी ,वहां पूजा की गई। थोड़ी सी भस्म माँ ,ने कहा था थाली में रख लेना। पद्मा बोली दीदी !!जल तो ख़तम हो गया ,माँ ,ने कहा था आते समय दरवाजे पर छिड़कना है। किसी तरह दो बून्द पानी बचा था ,उसी को छिटक दिया ,स्वस्तिक बनाकर अंदर आ गए। माँ !! अब न होगा हमसे। किसी और को भेजना आगे से। हमारे तो पैर ही दुःख गए।
आज भी बासोड़ा माँ ,शीतला माता के मंदिर में पूजा जाता है ,पहले जैसा कुछ बचा नहीं। पूरा गांव अब ,नहीं घूमा जाता।
रेनू शर्मा
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