औरत की वेदना
दीवारों से कई बार बात की ,
उसके साथ ,विश्वासघात हो रहा है ,
वे ,सुनती ही नहीं।
पीपल की पत्तियों को ,दुखड़ा सुनाया ,
वे ,मानती ही नहीं।
तुलसी के विरबे को समझाया ,
वो ,समझती हैं पर ,दखल नहीं देतीं।
कई बार इंसानों को साझा किया ,
उन्होंने माना ही नहीं।
औरत !! कहाँ अपनी पीड़ा का
वमन करे ,उसने रूककर ,ठहरकर
विरक्त होकर ,सिसककर ,झल्लाकर
रूठकर ,चिल्लाकर देख लिया।
रातों की वेदना को ,करवटों में
समेटा है ,उसने !!
उसके साथ ,विश्वासघात हो रहा है ,
वे ,सुनती ही नहीं।
पीपल की पत्तियों को ,दुखड़ा सुनाया ,
वे ,मानती ही नहीं।
तुलसी के विरबे को समझाया ,
वो ,समझती हैं पर ,दखल नहीं देतीं।
कई बार इंसानों को साझा किया ,
उन्होंने माना ही नहीं।
औरत !! कहाँ अपनी पीड़ा का
वमन करे ,उसने रूककर ,ठहरकर
विरक्त होकर ,सिसककर ,झल्लाकर
रूठकर ,चिल्लाकर देख लिया।
रातों की वेदना को ,करवटों में
समेटा है ,उसने !!
रेनू शर्मा
No comments:
Post a Comment