Monday, July 15, 2024

हे !! जलते चिरागों पर ,मंडराते पतंगों !!!

जब ,सूट -बूट -टाई -काला चश्मा 
और मतवाली चाल पर ,छोरियां ,
बरछी सा ,दृष्टिपात करतीं थीं। तब ,
काली घटा सी ,लटों को छिटका देते थे ,
हम ,अब ,ये कहाँ आ गए ?

ओ !! बरसात के टिमटिमाते जुगनुओं !!

ढीली सी पतलून पर ,फुल बाजू कमीज है ,
टाई की गांठ कभी ,कामिनी उलझाती थी। 
अब ,माला सी पिरोकर खुद ही 
फंदा सा कस लेते हो।

 ओ !!साठ बरस के युवा !!!

जुल्फें स्याह से ,चितकबरी हो गईं ,

कभी ,लापरवाह कभी ,बेतरतीव हो गईं ,
नज़रों की गहराई का माप ,
चश्मेबद्दूर के माप सा बिना 
इंच -फुट के इशारों में होता था।
समंदर  से भी डीप जो ,प्यार का 
दरिया था ,अब ,दल -दल सरीखा 
मरुस्थल सा हो गया है। 
एक ठूंठ भी उग आये कभी ,
इश्क का तो ,बासी चाय के रंग सी ,
नामुराद !! जिगर पर हल सा 
चला देती है।

 ओ !! सठियाये हुए मुसाफिर !!!

लबों की शोखी ,कितने बरस पहले 

खुश्क हो चुकी है। बेवजह जवान फेरकर 

चमक नहीं आ सकती ,
क़दमों की आवारगी अब ,जीन में कसे 
घोड़े सी हो चली है।

 हे !! बूढ़े बाज !!!

मुड़ -मुड कर शिकार करना ,

छोड़ दे ,संभाल ले लड़खड़ाते कदम ,
ये ,जश्न मिलन की पुनरावृति का है ,
इतिहास को यादों का किला बना दो। 

आओ ,दीवानों !!!

स्मृतियों को स्पर्श का आलिंगन कर 
अमरता का बोध करा दो। 

उठो ,प्लेटिनम हीरे की खदानों !!!

मद मई बहारों को ,आगोश में 
भर लो ,नाचो ,गाओ ,झूमो --

रेनू शर्मा 





















































 

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