श्वान सेवा
रमा जब छोटी थी ,तभी से देखती थी कि गली में कुत्ते घूमते रहते हैं। दादी कहती थी जा ,बेटा ! काले कुत्ते को रोटी डालकर आजा। कभी सफ़ेद गाय को रोटी डालो ,कभी बछड़े वाली गाय को। कुत्ते को रोटी डालो तो ,उसकी दुम हिलने लगती थी। मुंह भी कभी ऊपर ,कभी नीचे होता था। कभी सोचती ये कुत्ते कहाँ खाना खाते होंगे ? फिर याद आया ,दादी रोटी देती है ऐसे ही और लोग भी देते होंगे।
घर के बाहर गाय बंधी रहती है उसके खाने का बर्तन बड़ा है। सुबह शाम का शी गाय को रोटी के टुकड़े ,साग का पानी ,अनाज का सालन और जाने क्या -क्या मिलाकर देता है। कई बार कालू कुत्ते को गाय के बर्तन से रोटी निकालते देखा है। उसे भी खाना मिलता है पर कालू जाकर कहीं छुपा देता है जब वो भूखा नहीं होता। एक बार माँ ने घर पर पॉमेरियन कुत्ता मंगवा लिया। सोचा सुरक्षा रहेगी ,बच्चे खेलते रहेंगे और जानवरों के प्रति संवेदनशील रहेंगे। जब वो आया तो ,बाबा खुश नहीं थे। उन्हें लगा किसी को कैद किया जा रहा है। लेकिन रमा सहित सारे बच्चे खुश थे। उसका नाम डायना रखा गया। सफ़ेद झबरीले बाल ,मुंह तो दीखता ही नहीं था। एक दिन माँ ने थोड़े बाल काट दिए तब ,मुंह समझ आया। खाने में सब कुछ उसे पसंद था। माँ का कहना मानती थी।
माँ ही उसे बाहर ले जाती थीं ,माँ उसे बोलती देखो डायना ! बगल वाले घर में नहीं जाना है ? नहीं तो ,पिटाई लगेगी। माँ को सुनती लेकिन जाती जरूर थी ,जब वहां के बच्चे मारते तब ,भागती थी। माँ ,को बुरा लगता। उसे मुंह पकड़कर माँ समझाती थी ,आगे से ऐसा किया तो ,खाना नहीं मिलेगा। लगातार माँ को देखती रहती और ऐसा लगता मानो कहती हो ,आगे से नहीं होगा। एक दो घंटे माँ और डायना का अबोला रहता। थोड़ी देर बाद माँ के पैर चाटने लगती ,खाना दो न। जब खाना हो जाता तब ,माँ फिर उसकी क्लास लेती।
दूसरे दिन जब माँ ,डायना को बाहर ले गई तो ,उस घर के सामने खड़े होकर भौंकती रही तब ,आगे गई। माँ को दिखा रही थी मुझे , यहाँ नहीं जाना है। हर समय बच्चों साथ खेलती रहती। कभी रात को माँ को जगा देती ,चूहा देख लेती ,उसे पकड़ने की जुगत करती रहती। माँ हमेशा उसका पकड़ा चूहा बाहर फिंकवा देती। डायना समझ गई इसे पकड़ना है ,खाना नहीं है। माँ ,जब पूजा घर में जाती ,डायना बाहर दरवाजे पर बैठ कर भीतर का सब देखती रहती कि माँ क्या कर रही है।
डायना बाहर जाती थी पर अन्य कुत्ते से दोस्ती नहीं की। कोई भी नासमझ नहीं होता। माँ बच्चे की तरह बारह बरस तक डायना को पालती रही ,एक दिन बीमार होकर डायना चली गई। माँ ने अपने खेतों पर उसे स्थान दिया। तब से बच्चे दुखी थे लेकिन कोई दूसरी डायना नहीं आई।
रेनू शर्मा
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