कैसे और क्या लिखूं
सिया जब छोटी थी तब ,स्कूल का होमवर्क करने के बाद सोचती थी अब क्या लिखूं ?डायरी के पन्ने लिखकर फाड़ा करती थी। उसे लगता था अच्छा नहीं लिखा। कभी सोचती हमारे बाबा कितने महान व्यक्ति हैं ,उनके बारे में लिखना चाहिए लेकिन कई बार घंटों बैठने पर भी कुछ समझ नहीं आता था। एक दिन बाबा स्वर्ग सिधार गए तब ,सिया डायरी लेकर छत पर चली गई और बाबा के लिए सुन्दर कविता की रचना कर डाली। जब ,दुबारा पढ़ा तब ,लगा अरे ! ये कैसे लिख दी ?
सिया को समझ आया जब ,संवेदनाएं आहत होती हैं तब व्यक्ति के भीतर उथल -पुथल होती है और शब्द स्वत : ही फूटते हैं। तब सिया छटवीं क्लास में थी ,धीरे -धीरे लेखन का तरीका और शब्दों का चयन भी बदलने लगा। सभी लोग सिया की तारीफ करते थे। लेकिन जब भी समय मिलता सिया किताबें पढ़ती रहती थी। जब भी छुट्टियां होती पढ़ना -लिखना चलता रहता। कभी लिखकर अखबार में भेज देती और छप भी जाता तो ,हौसला मिलता।
शुरू में सब लिखा हुआ छुपाकर ही रखती थी लेकिन फिर सभी को पढाने लगी। उसके बाद सिया के लेखन में सुधार हो गया ,कोई कमी होती तो माँ बता देती थी ,कभी सहेलियां ,कभी टीचर भी बताती थी। छुट्टी में हमेशा एक नया काम सीखा जाता था कभी ,सिलाई ,कभी कढ़ाई ,कभी पेंटिंग। सिया जब ,पढाई से ऊब जाती तब ,भाई -बहनों को खत लिखती थी। सिया के ब्याह की बात चलने लगी। जब रिश्ता तय हुआ तो ,वहां भी खत लिखने लगी। सभी प्रशंसा करते थे।
एक डायरी बना ली थी उसमें किसी विषय पर लिखने लगी कभी कविता ,कभी कहानी ,कभी लेख। चार पांच डायरी जब भर गई तब ,पति देव ने उठाई और अपने एक प्रकाशक मित्र को पकड़ा दी। भाई किताब का रूप देना है ,फिर धीरे से सभी रास्ते पता चलते गए और कई किताबें सामने आ गई। कहानी की किताब गंध और कविता की किताब पांच तत्व सामने आ गई। अब ,अधिकांश कहानी लिखी जाने लगी।
हमारे आस -पास के वातावरण में ही हजारों पल ,बातें ,स्थिति ,झगडे होते हैं कि उन्हें शब्दों में पिरोकर कुछ भी रूप दिया जा सकता है। बस ,थोड़ी सी संवेदना की जरुरत होती है ,उस पात्र के साथ खुद को परिवर्तित करना पड़ता है , या कहें उस पात्र को ही जिया जाता है तब ,जाकर एक ह्रदय स्पर्शी लेख बन पाता है। लेखक हमेशा एक पैन और डायरी का बोझ साथ रखते हैं। उनकी रचनाओं में हजारों आंसू ,सिसकियाँ ,आहें दबी रहती हैं।
सिया को लगता है शायद वो अच्छा लिख लेती है। लेखन और पठन की प्रक्रिया जारी है।
रेनू शर्मा
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