ब्लैक होल
हमारे अंतरिक्ष में सैकड़ों ब्लैक होल हैं ,यह एक ऐसा ,रासायनिक माध्यम है ,जहाँ पदार्थ का अस्तित्व नहीं रहता। भयानक चक्रवात होने के कारण शुद्ध ऊर्जा का अस्तित्व कायम रहता है। यह वही प्रक्रिया है जब ,माँ दही से मक्खन निकालती है ,दही से मठ्ठा बनता है फिर शुद्ध मक्खन आता है। ब्लैक होल के एक छोर से दूसरे किनारे जाया जा सकता है ,श्री माध भगवत गीता के अनुसार। पृथ्वी ,चाँद ,तारे ,सूर्य ,ग्रह ,नक्षत्र सभी अपनी धुरी पर घुमते हैं। हम किसी ब्लैक होल में स्वयं नहीं जा सकते।
ब्लैक होल टूटते बिखरते तारों की विस्फोटक ऊर्जा का संग्रह होता है ,जहाँ व्यक्त -अव्यक्त कुछ न हो ,किसी पदार्थ के व्यक्त होने से पूर्व का स्थान या कहें कि अणु के कणों को जोड़ने के पूर्व का स्थान है। साधारण भाषा में सौर मंडल का डस्टबिन भी कह सकते हैं। परन्तु वहां की ऊर्जा शुद्ध होती है। जब तक ग्रह -नक्षत्रों पर कोई धूमकेतु नहीं टकराता या आपस में सभी ग्रह झूपन -झुपइया नहीं खेलते तब तक ,सौर मंडल एक विशाल ब्लैक होल नहीं बन सकता। प्रलय काल में यह सब हो सकता है। एक गोला होगा ,ठंडा होकर ,अनेक आकाश गंगाएं बनेंगी ,तारे ,सूरज ,पृथ्वी सब बन जायेंगे। हम फिर से धरती पर होंगे।
मानव शरीर भी आकाश गंगा है ,सौर मंडल भी हैं ,अपनी शक्तियां भी हैं। हमारा मस्तिष्क सूर्य सा दमकता है ,सम्पूर्ण शरीर में शक्ति प्रवाहित करता है। हमारा ब्लैक होल दोनों भृकुटियों के मध्य है। ध्यान क्रिया से बाहर आकर ही व्यक्ति अपना अस्तित्व समझ पाता है। माना जाता है व्यक्ति यदि मरणावस्था में केंद्रित करे तो ,वह शुद्ध ऊर्जा को ग्रहण कर अंधकार से प्रकाश को पाता है।
रेनू शर्मा
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