समीक्षा
श्री विजय कांत वर्मा जी ने अपने पहले कविता संग्रह में ही हिंदी भाषा पर मजबूत पकड़ का परिचय दिया है , भावों की अभिव्यक्ति को सकारात्मक मोड़ देने में माहिर हैं। वर्मा जी की एक कविता मृगतृष्णा भी बल और सम्बल देती है। तृष्णा भी है जो आशा विश्वास दे जाती है। वर्मा जी की दूसरी कविता कुछ बहके -बहके सौदे में समाज की ढकोसला निति से नाराजगी बताती है कि मंदिर -मस्जिद अब सौदा करने लगे हैं। भरम और ठगी के बाजार बन गए हैं। वहीँ आँखों और मुस्कानों के सौदे उन्हें सहारा देते हैं। उसके बाद भी लुटकर आनंद को परमानन्द मानते हैं ,यही कवि के व्यक्तित्व का सार है।
एक अन्य कविता सौपान में ही सार है ,सौपान को कवि संघर्ष का क्षेत्र बताते हैं ,क्योंकि शिखर पर पहुंचना जिंदगी रुकने जैसा अहसास है ,संघर्ष को ही जीवन की लय मानते हैं। फिर कविता सृष्टि चक्र में कवि शिल्पकार के शिल्प को चिरकालीन बताते हुए सम्मान दे रहे हैं। धुल के बहु रूप ,में कवि सूक्ष्म से व्यापक होने का रहस्य बता रहे हैं। कवि की कल्पना भिन्न रूपों पर विचार कर अभिव्यक्त हो रही है। तिथियां और मुहूर्त कविता में भरम के जाल को खोलने का प्रयास करते हैं।
मेरी वसीयत में कवि जीवन की व्यथा को बताते हुए रिश्तों के नासूर पर चर्चा करते हैं। पंचतत्व का अद्भुद खेल में कवि पंचतत्वों के क्रोधित होने से चिंता में डूब गए हैं। मानव के अतिक्रमण की पराकाष्ठा से दुखी हैं। बुलंद हौसलों का समय कविता में कभी हिम्मत न हांरने का साहस देते हैं। कभी शिक्षा देने का आभास कराते हैं। तभी वेदना आकर घेर लेती है। पुरवाई का झोंका उनकी तपिश कम करता रहता है।
पृथ्वी पर युगों तक जो परिवर्तन हुए हैं उनसे जीवन का सार समझाने की कोशिश करते हैं। कवि ने अपनी सभी कविताओं में सुन्दर शब्दावली के साथ भावों को उद्धृत किया है। श्री विजय कांत वर्मा जी का यह कविता संग्रह सराहनीय रचना है.जब तिथियों के जाल में उलझते हैं तब ,सफलताओं के साथ हताशाओं का जिक्र भी करते हैं। एक सैनिक होने के नाते उन्हें छल -कपट का खेल भाता नहीं है। कर्म और विचारों का सृजन उन्हें सांत्वना देता है।
एक स्थान पर मोक्ष की बात करते हैं ,शब्दों का जाल कवि को मायाजाल में ही उलझाकर रखता है। कवि मुक्ति पाने का इक्षुक भी है लेकिन प्रेयसी के मधुर ख्वाब ,तपिश ,तन्हाई कवि को तोड़ देती है। बेसुमार यादों का दरिया कवि मन के किनारे से रिसता रहता है। हर विषय पर संजीदा हैं। शुभकामनाओं के साथ --
रेनू शर्मा
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