पद्म श्री, श्री मति उषा किरण खान जी
सम्पूर्ण पृथ्वी के औरा पर जब ,सूर्य देवता की दस्तक होती है ,तब पृथ्वी का आभामंडल हलकी दूधिया रौशनी से स्नान करने लगता है ,उस पल को उषा नाम से जाना जाता है। धीरे -धीरे पूरा पृथ्वी मंडल हलकी लालिमा लिए अपने ओज को प्रस्फुटित कर पहाड़ों ,नदियों ,झरनों ,वनों ,मधुवनों के बीच से जो प्रकाश की रेखाएं दृश्यमान करता है उस बेला को सूर्य किरण जाता है।
श्री मति उषा किरण खान जी को यदि जानना है तो ,देखना होगा कि तेजस्वी ललाट पर गोल लाल टिकुली ,माथे पर उमड़ -घुमड़ आती रेशमी कुछ सन जैसी सफ़ेद ,कुछ काली घटाओं जैसी लटें ,उनका मस्तक चूमती रहती हैं। आँखों के समंदर में अभी क्या -क्या रत्न डूबे हुए हैं ,उन्हें कोई ताड़ न ले ,इसलिए हलकी काजल की सीमा रेखा बंधी है। हमेशा भारतीय परिधान साडी को गरिमामय लहजे में धारण करते हुए ,बेहद मृदुल स्नेह के साथ ,पलभर में अपने भीतर को प्रतिबिम्बित कर देतीं हैं।
आपके सामने एक आइना सा चमक जाता है। जाने कितने जन्मों का सरोकार उनके सानिध्य से प्रस्फुटित होता है। ऐसी निर्मल उषा जी की सर्व व्यापी लेखनी से सभी परिचित हैं। पदम् श्री जैसे सम्मान से सम्मानित होना ही उनकी रचनाओं के स्तर को दिखाता है। जब ,लेखक अपनी रचनाओं के पत्रों को जीने लगता है तब ,अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा होती है। यह रचनाकार के लिए प्रसवकाल जैसा ही होता है।
उषा जी की रचनाएँ -फागुन के बाद ,सीमान्त कथा ,रतनारे नयन ,पानी पर लकीर ,अनुत्तरित प्रश्न ,भामती एक प्रेम कथा ,अनगिनत रचनाएँ उन्हें साहित्य की ऊंचाइयों पर बिठा देती हैं। हम उनके आत्म शांति की प्रार्थना करते हैं।
रेनू शर्मा
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