कोई न होगा
रक्त की एक बून्द या
ऊतक का कतरा ,
हमारे त्रिकाल का
लेखा -जोखा समेटे रहता है ,
बच्चा ,माँ की धरोहर है ,
माँ ,सिमट जाती है।
उसकी छोटी खुशियों
के इर्द -गिर्द हर पल
तकती है राह ,तिलिस्म में
जकड़े ,मस्तिष्क
पल में हँसते ,मुस्कराते
प्रतिशोध की अग्नि में
कोई कैसे ,प्रेम को भस्म
कर सकता है ?
एक दिन राख भी न
बचेगी ,कोई न होगा ,
कन्धा देने वाला ,
समय है ,संभल जा।
रेनू शर्मा
ऊतक का कतरा ,
हमारे त्रिकाल का
लेखा -जोखा समेटे रहता है ,
बच्चा ,माँ की धरोहर है ,
माँ ,सिमट जाती है।
उसकी छोटी खुशियों
के इर्द -गिर्द हर पल
तकती है राह ,तिलिस्म में
जकड़े ,मस्तिष्क
पल में हँसते ,मुस्कराते
प्रतिशोध की अग्नि में
कोई कैसे ,प्रेम को भस्म
कर सकता है ?
एक दिन राख भी न
बचेगी ,कोई न होगा ,
कन्धा देने वाला ,
समय है ,संभल जा।
रेनू शर्मा
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