Sunday, June 9, 2024

कोई न होगा  

 रक्त की एक बून्द या
 ऊतक का कतरा ,
हमारे त्रिकाल का 
लेखा -जोखा समेटे  रहता है ,
बच्चा ,माँ की धरोहर है ,
माँ ,सिमट जाती है। 
उसकी छोटी खुशियों 
के इर्द -गिर्द हर पल 
तकती है राह ,तिलिस्म में 
जकड़े ,मस्तिष्क 
पल में हँसते ,मुस्कराते 
प्रतिशोध की अग्नि में 
कोई कैसे ,प्रेम को भस्म 
कर सकता है ?
एक दिन राख भी न 
बचेगी ,कोई न होगा ,
कन्धा देने वाला ,
समय है ,संभल जा। 
रेनू शर्मा 



















 

No comments: