गंगा घाट
गंगा की तरह जीवन जीने वाली रानी जैसे गंगा पहाड़ों से निकलकर ,बहती हुई हजारों धाराओं से बहती हुई समुद्र में मिल जाती है ठीक वैसे ही रानी भी ,माता -पिता के पास से ,ससुराल आ गई अब ,पति के साथ गंगा घाट देखने की जिद कर रही है। रानी अभी गंगा किनारे शहर में रहने आई है ,एक दिन पति शुभ से कहा -मुझे गंगा घाट जाना है ,पूजा करनी है ,मैया को चुनरी चढ़ानी है। हाँ ,आज शाम को ही चलो। शाम को रानी तैयार थी ,जब घाट तक पहुंचे तो ,वहां अभी काम चल रहा था। गंगा तो बारह फुट नीचे थी। यहाँ से तो बस ,गंगा मैया का दर्शन हो सकता था। दिया -बत्ती कैसे हो ?
पति देव बोले -यहाँ तो यही घाट है ,यही से पूजा करो। क्या करती रानी ने वहीँ से माला गंगा में फैक दी और दिया मिटटी पर जलाकर वापस आ गई। ऐसा कैसे हो सकता है ? इतना बड़ा शहर और गंगा के लिए एक भी घाट नहीं ,ड्रायवर से बात न करने दे। रास्ते में शमशान भी था पर ,सीढ़ी वाला घाट नहीं दिख रहा। घर आकर चौकीदार से पूछ लिया -भैया यहाँ गंगा का घाट नहीं है क्या ? है मेडम ! पास ही है ,गाय घाट। जब ,छोटी थी नानी ,गंगा स्नान को ले जाती थीं। नाव में बैठकर बीच में जाते थे ,रेत पर उतरकर हम लोग मस्ती करते थे। नानी भजन गाती थीं ,सैयां से करदे मिलनवा ,गंगा मैया तोहे चुंदरी चढ़इवे। यही बात रानी को कचोट रही थी कि घाट पर दिया -बाती करना है।
कुछ दिन बाद गाय घाट से बुलावा आ गया ,वहां पूजा का सामान भी बिक रहा था ,रानी ख़ुशी से उछल गई ,एक महिला ने आकर बता भी दिया कि पूजा कैसे करनी है। पूजा के बाद रानी और शुभ वही बैठ गए ,बहुत देर तक गंगा की लहरों का ज्वार अपने भीतर से बाहर निकालते रहे। बच्चे ऊँची जगह से नदी में कूद रहे थे ,उनकी निडरता और गंगा निश्छलता सब दिख रहा था। दूर तक जलता हुआ दिया ,लहरों के साथ बहता जा रहा था। दोनो देर तक उसे देखते रहे।
एक बच्चा रानी के पास ही गंगा में डुबकी लगा रहा था ,तभी एक सज्जन आकर हवन की सामिग्री वहां डालकर चल दिए ,लड़का तुरंत आया और कचरे को उल्टा किया ,गंगा में बहा दिया ,उसे कुछ सोने की झुमकी मिली जो माँ को देदी। बाल्टी में पानी भरा और सीढ़ियां साफ़ कर दी। रानी सोच रही थी गंगा के किनारे कितनी दुनिया बस्ती हैं। नानी बताया करती थी कि रामेश्वरम समुद्र तट पर समुद्र खुद ही स्नान करा देता है ,बैठ जाओ लहर आएगी और ऊपर से निकल जाएगी।वही शुभ ने रानी के साथ किया यहाँ घाट नहीं है। प्रकृति के साथ जीना अलग तरह का आनंद देता है। जय हो गंगा मैया।
रेनू शर्मा
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