Saturday, June 8, 2024

फागुन  





  जीवा ,जब ब्याही गई तब ,फागुन लग चुका था ,खेतों में गेहूं चने की फसल लहरा रही थी। बच्चे ,चौकोर कागज पर पतली बांस की खिप्पच पर लेइ से खुद ही पतंग बना लिया करते थे। घिर्री पर थोड़ा सा धागा बांधकर छत से पतंग उड़ाने का अभ्यास करते थे। छतों पर आलू के चिप्स और पापड सूखने वाली महिलाएं उन्हें झिड़का करती थीं। बच्चों का पूरा ध्यान पतंग पर रहता था। शाम को जब घर जाते तब ,पता चलता अभी तो ,पढ़ाई भी करनी है। होली आने वाली है तो ,लकड़ी उठाने का काम भी इन्हीं सब को करना है। 

औरतें सुबह से घर -बाहर साफ़ -सफाई कर रही हैं। आँगन में चारपाई पर कहीं रजाई को धूप लगाईं जा रही है ,कहीं पानी गरम करने धूप में रखा है। मुश्किल से बच्चे पढ़ने जाते हैं ,वापस आकर त्यौहार की तैयारी में व्यस्त हो जाते हैं। बड़े लड़के रात को खेतों से खाली झोपडी उठाकर होली पर रख देते हैं। जीवा के बाबा की खाट भी लड़कों ने होली को समर्पित कर दी थी। बाबा रोज शाम और सुबह जानवरों के पास बैठा करते थे ,उनसे बात करते थे। 

एक दिन जीवा ! रोती बिलखती मायके से ससुराल चली गई ,पहली होली पर गांव आई थी जीवा ,उन्हीं बच्चों ने उसे गोबर कीचड से सान दिया था। जीवा ! उनके सामने हथियार डालकर चबूतरे पर बैठ गई थी। दो घंटे मस्ती करने के बाद जीवा स्नान करने गई ,उसे पता था शायद ये मेरी ,आखिरी होली इन बच्चों के साथ हो ?क्योंकि अब ,तो रिवाज ही बदल गए हैं। शाम को जीवा ने बच्चों को लड्डू पार्टी दी थी। 

दो -चार दिन बाद जीवा घर वापस आ गई ,कभी ,दरवाजे के बाहर बैठकर सोचती है -छोटे दोस्तों के साथ विष -अमृत ,खो -खो ,कबड्डी खेलने का मजा कुछ और ही था। जीवा तब बाइस बरस की और दोस्त चार से दस बरस के। माँ ने खो -खो खेलती जीवा से कहा था -जीवा !! चल तैयार हो जा ,किसी से मिलने जाना है। जीवा ने नजर उठाकर देखा भी नहीं ,उसके जहन में चल रहा था अब ,खेल तो ख़तम हो गया होगा। कहने को सात लोग आस -पास थे लेकिन जीवा मानो अकेली अपनी दुनिया में मगन थी। लड़का अपने दोस्त के साथ बातें करने में व्यस्त था। 

वापस जाते समय जीवा सोच रही थी ये कैसी मुलाकात है ?न कोई बात हुई ,न देखा और रिश्ता जीवन भर के लिए हो गया। आज न आँगन बचा ,न खेलने वाले बच्चे रहे ,अब ,दरवाजे से आवाज देने वाला कोई नहीं। रात को कोई आइस -पाइस खेलने वाला भी नहीं। जीवा ! अब ,गांव की कहानियां लिखकर डायरियां भर रही है ,फागुन की रंगीनी अब नहीं दिखाई देती। 

रेनू शर्मा 










































 

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