घूमती जमीं
बादलों का डेरा इधर से उधर सरक रहा है ,कभी किसी जानवर की आकृति बनती है ,तभी उसका सिर गायब हो जाता है। धीरे से बादल हवा के साथ उड़ जाता है। हवा की सरसराहट खिड़की के सहारे सुनी जा सकती है। तनु हवा भरे तकिये का सहारा लिए अपनी सीट पर पाँव सीधे कर लेट गई है ,खिड़की से पर्दा सरका लिया है। ट्रेन अपनी रफ़्तार से भाग रही है ,सामने दो लोग बैठे हैं लेकिन वे लोग अपनी बातों में व्यस्त हैं। शायद किसी समारोह से लौट रहे हैं ,वहीँ की चर्चा चल रही है।
अभी अँधेरा थोड़ा बढ़ रहा है ,बाहर के खेत -खलिहान ,गांव अब दिखाई नहीं दे रहे। जब लाइट दिखती है तब ,पता चलता है कि कोई कस्वा निकल गया। आकाश में चाँद -तारे भी स्पष्ट नहीं हैं। तनु के विचारों की तरह सब कुछ बदलता जा रहा है। माँ ! ठीक ही कह रही थी कि तनु जॉब करले ,उसके बिना गुजारा नहीं होगा ,शशि अभी छोटी है उसे समझ नहीं आता कि लड़की की पढ़ाई क्यों जरुरी है। पिछले महीने ही महिंद्रा कंपनी से जॉब का लेटर आया था। सभी लोग खुश हो गए।
माँ ,बाबा कोई भी साथ नहीं है ,बाबा ने नया फोन दिलवा दिया ,खिड़की की हवा के साथ तनु सोचती जा रही है ,चिराग को पता चला तो खुश हुआ था ,आ जाओ तनु! मैं हूँ न ,मेरा दोस्त अकी वहीँ है ,कोई दिक्कत नहीं होगी। एक के बाद एक स्टेशन निकलते जा रहे हैं ,ट्रेन की खड़खड़ाहट भी सुनाई दे रही है ,नींद नहीं आ रही। तभी चिराग का फोन आ गया ,क्या चल रहा है ? कुछ नहीं यार ! थोड़ी नर्वस हो रही हूँ ,अरे ! कोई नहीं तुम मस्त सो जाओ ,सुबह आराम से उठना ,माँ से बात किये भी सात घंटे हो गए ,तो क्या हुआ ?चल सो जा बाय।
बादलों की लुका -छिपी और तारों का झुण्ड सा दिख जाता था ,कुछ लोग तो फर्श पर ही सो रहे हैं ,बहुत भीड़ है आज ,तभी किसी छोटे स्टेशन पर ट्रेन रूकती है ,लोग जहाँ मन ,वहां सो रहे हैं ,मानो सोने ही आये हों। तभी दूसरी ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल गई अब ,ये चली। जाने कब तनु नींद के आगोश में चली गई। सुबह छह बजे से चाय की पुकार होने लगी ,नास्ता बोलो नास्ता ,मेडम नास्ता लगेगा ?लिखा दो आठ बजे मिल जायेगा ,तभी माँ का फोन बज गया ,तनु ! ठीक है सब ,हाँ माँ ,अभी फोन करती हूँ ,मुंह धोने जा रही। चादर से सामान धक् गई ,जब लौटी तो खुद ही भूल गई ,कहाँ बैठी थी।
चिराग ने दोस्त का पता और नंबर दिया था ,कई मिस्ड कॉल थे ,तभी तनु को याद आया अरुणिमा भी तो पुणे में है। कॉफी अच्छी नहीं थी लेकिन नींद भगाने के लिए सही थी। माँ ने शकर पारे ,मठरी ,लड्डू सब रखा है लेकिन अभी मन नहीं है। माँ को बता रही थी ,बड़ा मजा आ रहा है ,ट्रेन में सब लोग मेरे साथ ही तो जा रहे हैं ,माँ मैं अकेली नहीं हूँ। तभी चिराग का फोन आ गया ,माँ अभी बात करती हूँ। कहाँ ,आ गई ,बस आने वाला होगा आधा घंटा और होगा ,अपना सामान रख ले ,आज मीटिंग है मिलता हूँ।
चिराग जब भी फोन करता है ऐसा लगता है जैसे मेरे साथ ही है ,दोस्त हमेशा ख्याल रखते हैं। हम लोग कॉलेज में साथ थे ,पढ़ते भी साथ ही थे फिर चिराग बेंगलौर चला गया तो बात कम होने लगी। जो लड़का नास्ता लाया था कल्ली उसी को बोला -भैया मेरा सामान नीचे उतरवा देना ,उसने कहा मैं ,आ जाऊंगा आप चिंता नहीं करना दीदी। तनु सोच रही थी लड़कियों को जाने में इतनी तकलीफ नहीं होती होगी शायद ,जितनी मुझे महसूस हो रही है। माँ ने तो ,कई सारे डिब्बे रखे हैं तभी शकर पारे का डिब्बा उठा कर खाने लगी। ट्रेन दौड़ रही है ,कल्ली उसके पास से निकला मुस्करा दिया ,दीदी नको ,तनु कुछ समझी नहीं ,ट्रेन रुकते ही कल्ली आ गया दीदी बोला था न ,नीचे जाकर पूरा सामान रख दिया ,सोच रहा था दीदी अपना नंबर देगी ,लेकिन में तनु ने उसे शकरपारे का डिब्बा पकड़ा दिया। कुली को बुलाकर बाहर टैक्सी करने लगी। रास्ते भर नए शहर के बाजार देखती रही ,यहाँ तो ,सांभर बड़ा ,इडली ,डोसा यही महक घूम रही है। तभी एक बिल्डिंग के गेट पर गाड़ी रुक गई ,मेडम आ गया होटल ,रूम पर जाकर माँ को बता दिया ,पहुँच गई हूँ ,फिर फ्रेश होने के बाद अरुणिमा से बात की। सुबह की नई जिंदगी तनु का इन्तजार कर रही है। पूरे आत्मविश्वास के साथ कल की तैयारी हो रही है।
रेनू शर्मा
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