Friday, June 7, 2024

लावा 

 कुछ कहे हुए शब्द 
शायद तुम्हें ,
बबूल के शूल से 
चुभ  रहे हैं। 
भीतर से ,लगातार 
तीक्ष्ण बाणों से 
जो ,मुझे घायल कर  रहे हो ,
रिस रहा है ,लहू 
मेरी आत्मा से। 
तुम नहीं समझ पाओगे ,
रोक रहे हो , स्वयं को 
क्योंकि ,तुम्हें पता है ,
मेरे भीतर लावा 
खदक रहा है। 
यहाँ ,सहारा नहीं 
तुम्हारे व्यसनों का ,
निम्न स्तरीय शब्दों का। 
मैं ,समझ रही हूँ ,
तुम्हारी बेबसी ,मज़बूरी ,घृणा को। 
कब तक ,ढोते रहोगे 
थोथे प्यार की जिन्दा 
कब्र को ,क्या पता 
लावा एक दिन ,मेरी 
रूह को दफना दे ,वहीँ 
तृप्त होंगी तुम्हारी सांसें। 
रेनू शर्मा 































 

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