अपनों के बीच
अलसाई सी सुबह है ,उठने का मन नहीं हो रहा ,चादर सिर तक तानकर सोने की कोशिश हो रही है तभी, माँ आ जाती है। अरे ओ ,बेशर्म !! उठ जा ,मोहना चल बाबा को चाय देकर आ। तभी गाल पर तड़ाक से आवाज आई ,सुनता नहीं है ?उठ जा और सर पर हाथ भी घुमाती जाती है। तू तो शहर में अकेला रहेगा तभी ठीक रहेगा ,मैंने करवट ली और माँ को बिस्तर पर गिरा लिया। सुबह से उधम करती हो ,बाबा से बोला करो घर से चाय पीकर जाय करें। बेटा ! अपनी आदतें सुधार लो ,माँ ,अगर मैं लड़की होता तो ,कहती पराये घर जाना है ,उठ जा। माँ ,कभी रसोई में जाती ,कभी दरवाजे के पास चली जातीं। कभी सरजू को फटकार देती ,अरे ! माई मुझे क्यों बोल रही हो ?माँ कुछ अनमनी सी लग रही हैं। बाबा बोल रहे थे ,माता के दर्शन करने जाना है।
सरजू ! गाय को सानी लगाईं या नहीं ? मैया ! दूध गरम भी हो गया ,मोहना आज मेरा मन ठीक नाय ,देवी के दर्शन की बात ना होती तो ,मना कर देती। चलो ,ठीक अब ,कुछ मत सोचो ,चलो मैं भी चलता हूँ। खाना बना लो लेकिन। मिथिला ! जाने की तैयारी करने लगी। नदी में नहाने के लिए एक जोड़ी कपडे भी रख लिए। तभी सरजू बोला माई ! आपकी छोटी गाय खाना नहीं खा रही ,चल छोड़ खा लेगी ,इसका नाम राधा जबसे रखा है ,बिगड़ गई है मोहना भाई को देखती रहती है। सरजू ,चल काम करवा ले।
चाची इक्का तैयार है ,कैलाशी बाहर आ गया है ,हाँ ,रुक लाला ! अभी आते हैं। मिथिला !! ला कुछ खिला दे ,क्या बनाया है ,कुछ खास नहीं ,मोहना भी चल रहा है तो ,पूड़ी सब्जी बनाई है ,ठीक है। इक्के पर सवार होकर बीस किलोमीटर हिचकोले खाते हुए गंगा मैया तक पहुँच गए। सब लोगों ने हर -हर गंगे करते हुए स्नान किया और देवी मैया की तरफ बढ़ने लगे। कैलाशी को नीचे पेड़ के नीचे आराम करने का बोल हम ऊपर चढ़ने लगे। भीड़ बढ़ रही थी माँ ,मेरे साथ थीं ,बाबा हमारे पीछे थे ,हम किनारे से ही चल रहे थे ,माँ को साँस लेने में तकलीफ होने लगी ,बेटा !!रुक जा ,बाबा का ध्यान रख।
तभी ऊपर से चीखते हुए कुछ लड़के अरे ! भागो जमीन खिसक रही है ,पहाड़ गिरने वाला है तभी बीच से ही लोग नीचे की ओर वापस होने लगे। भगदड़ मच गई ,माँ मेरे साथ थी लेकिन मेरा हाथ छूटा और वे बेहोश होकर नीचे गद्दे में गिर गई ,मेरे ऊपर दो लोग गिर गए तो पैर की हड्डी टूट गई ,बाबा दो लोगों के नीचे थे लेकिन सुरक्षित थे। माँ की चिंता थी। बाबा ने किसी तरह निकलकर मेरा पैर बाँध दिया ,तभी कैलाशी आवाज लगाता हुआ आ गया। उसने सहारा दिया और नीचे पहुँचाया। बहुत सारे लोगों को भीड़ से बचाया। नीचे माँ को कैलाशी ने उठाया और टेंट पर ले गया ,चोट लगी थी ,होश आने पर पानी पिलाया।
गांव के लोगों को पता था कि अपने लोग भी हैं ,सभी लोग गाड़ियों से आ गए ,घायल लोगों को अस्पताल पहुँचाया ,मोहना को और माँ को घर लेकर आये ,गांव के अस्पताल दिखाया ,बाबा कैलाशी के साथ वापस आ गए। वहां तो हर तरफ चीख -पुकार मची थी ,प्रशासन पहले से तैयार नहीं था। लेकिन सवाल उठता है वो कौन लोग थे जो ,चीखते हुए नीचे भाग गए ,उन्हें कुछ नहीं हुआ। कैलाशी न होता तो क्या होता ?गांव वालों ने आकर अपनों के साथ सभी को बचाया। फागुन मेरा दोस्त वहां मिल गया था तो ,मुझे बड़े अस्पताल ले गया ,प्लास्टर चढ़ाया गया। माँ ,गुम -सुम सी हो गई हैं ,उन्हें नींद नहीं आ रही। हमारे गांव ने जो मानवीयता दिखाई वो ,काबिले तारीफ है। अपनों के बीच हम आज सुरक्षित हैं।
रेनू शर्मा
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