Thursday, June 6, 2024

मौसी 

 उत्तर भारत की वादियों में अब ,ठंडक घुलने लगी है ,ऐसा लगता है जैसे कोई ,ए सी चला कर भूल गया है। कभी बादल घुमड़ते हैं ,कभी तेज हवाएं चलती हैं ,दूर पहाड़ियां धुंध से ढक गईं हैं। ऊँचे पेड़ जो बुजुर्ग से नजर आते थे अभी ,बर्फ की चादर ओढ़े बैठे हैं। टेड़े -मेढे रास्ते ऐसे लगते हैं मानो किसी ने तूलिका चलाई हो। बाहर बरांडे में बैठना अच्छा लगता है कभी  राधिका आती है वो मेरी रचनाओं पर बहस करती है ,तभी घंटी की आवाज सुनाई दी ,शारदा मौसी आई हैं। बड़े दिनों बाद आईं ,हाँ इधर से निकल रही थी सोचा तुम्हारे हाथ की चाय पी जाय ,हाँ क्यों नहीं ,अभी बनाती हूँ। अरे ! बैठो अभी बना लेना। हमारा बेटा आया या नहीं ,आते होंगे। 

क्या फैलारा लगा रखा है ,कुछ नहीं ,लिखाई -पढ़ाई का काम चल रहा था ,इसलिए। चलो ,बना लो चाय ,ये मौसी तो आफत हैं पूरी ,तभी बोल पड़ीं -सुलेखा !! कुछ पकोड़ी -सकोडी भी बना लेना ,कुछ खाने की इच्छा भी हो रही है। आज कल बहुये भी देखो कितनी आरामतलब मिलती हैं ,तुम्हारे जैसी कम मिलती हैं। मैं ,तो टीवी में देखती हूँ। अरे ! मौसी वो तो कहानी होती हैं। मौसी के पति आर्मी से थे ,अब नहीं हैं। अकेली हैं लेकिन राहुल को प्यार करती हैं ,कभी भी आ जाती हैं। तीर्थ करने जाती रहती हैं। दो घंटे गपशप करेंगी और पैदल ही गोल मार्किट होते हुए गुलमोहर निकल जाती हैं। बाहर की ठंडक को पुनर्जीवित करती हुई सोचने लगी मौसी को पता है राहुल बीयर पीता है ,फिर भी कभी उसे कुछ नहीं कहती हैं ,मुझे लेक्चर अवश्य देती हैं। बहु का साथ केवल खाने -पीने तक है ,उसका मन भाव किसी को भी कभी समझ नहीं आता। भारतीय महिलाओं के अनसुलझे प्रश्न मेरे जहन में उलझे हैं। 

बाहर बैठी मैं ,अपनी दुनिया में मस्त थी ,लेकिन मौसी ने आकर सब अस्त -व्यस्त कर दिया। तभी फिर घंटी बज गई राधिका समोसे का पैकेट हाथ में पकडे खड़ी थी। राधिका किस्से सुनाने लगी ,मैं कॉफी बना रही थी। किसी नई कहानी की स्क्रिप्ट दिमाग में घूमने लगी। हम लोग राहुल आते तक ,वहीँ मस्ती करते रहे। 

रेनू शर्मा 





























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