Sunday, June 30, 2024

शगुन बसूली   एक रात ऐसे डिनर पर जाना हुआ जहाँ प्रणया ने सोचा भी नहीं था कि ऐसे लोग भी होते हैं। बहु बेटा विदेश में रहते हैं ,माता पिता भारत में ही घर बनाकर रहते हैं। जब ,नाती हुआ तो ,उसे भारतीय समाज से मिलवाने के लिए एक पार्टी बाबा -दादी ने रखी थी। कोई गलत बात नहीं थी। दादी ने सोचा यहाँ हम लोग जो शगुन देकर आते हैं उसकी बसूली भी हो जाएगी। दादी को देखकर तो ,यही लग रहा था। पति ने बाबा -दादी से परिचय करवाया और प्रणया एक कुर्सी लेकर बैठ गई ,वहां कोई अन्य महिला उसकी पहचान की नहीं थी तो ,संकोच भी था। 

पुरुष लोग एक गोल टेबल पर जाम छलका रहे थे ,प्रणया कभी किसी से ,कभी किसी से बात करने की कोशिश कर रही थी। प्रणया उस दिन फोन भी नहीं ले गई थी ,पति को ही बुला लेती कि चलो ,करीब एक घंटे बाद एक महिला प्रणया को दिखाई दी जो ,पहले कहीं मिली थी। उनका फोन लेकर पति को फोन लगाया ,अभी आता हूँ कहकर रख दिया। मिसेज दत्ता ,पूछ रही थीं आप किसी को जानती हो ,नहीं। सभी की बातें सुन रही हूँ। सभी साठ बरस से ऊपर हैं ,खाना खाकर घर जाना चाहती हैं ,इसी बीच मिसेज वर्मा !अपने नाती को अंग्रेजी गाड़ी में बिठाकर सभी के सामने जाकर बोल रहीं थीं ,ये देखो ,शर्मा ऑन्टी ,ये तिवारी दादी ,ये गोयल आंटी हैं। सभी उस समय लिफाफा दे रहीं थीं जो दादी के पर्स की शोभा बढ़ा रहे थे।

प्रणया को लगा जिसे देना होगा वो आपको खोजकर भी देगा ,लेकिन ये क्या तरीका है। बड़े प्रयास के बाद पति को बुलाया गया ,बहुत जतन के बाद एक  रोटी खाकर प्रणया सोच रही थी कि पैसा होने पर भी मानसिकता तो गरीबों जैसी ही है। क्योंकि जो लोग गुलदस्ते  थे वे ,टेबल के नीचे लुढ़क रहे थे। 

रेनू शर्मा  
























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