नाराजगी
बीना जब गांव गई तब ,चाची ने कहा था कि कल्लू की अम्मा बीमार है तो ,उन्हें देखने चली जाना। सुधा दी भी जा रहीं हैं यही सोचकर चली गई। गांव से जब भी अम्मा शहर आती थीं तब ,सभी से मिलने जाती थीं। बीना सोच रही थी अम्मा कितनी खुश हो जाएँगी कि हम गांव में उनसे मिलने आये हैं। वहां गए तो ,घर का दरवाजा खुला ही था क्योंकि गांव में शाम को दयवाजे खोलकर रखते हैं क्योंकि खेत से किसान और जानवर घर वापस आते हैं ,कहा जाता है कि लक्ष्मी घर आती हैं।
अम्मा बाहर चारपाई पर बीजना हिलाती हुई जाने किस दुनियां में मगन थीं जब ,सुधा बीना पहुंची तो ,किसी को पहचान ही नहीं पाई ,ये कौन हैं ? अपनी नातिन से पूछ रही थीं। उन्हें बताया ये सुधा दी हैं ,ये भाभी हैं बीना शहर से आई हैं। फिर भी उन्हें कोई पड़ा ,बहुत समय तक बात करने के बाद उन्हें अचानक से याद आया। उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। अरे ! तुम गांव आये हो ? चल लाली !!पानी ला ,चाय बना। अपनी ख़राब तबियत भी भूल गई।
लाली मेरे पास बैठो ,अब नाय बचुँगी। वो तुम्हरो भैया कल्लू !बड़ो आदमी बन गयो है। बाकी बहू ने अपने नए घर की पूजा करवाई ,लाली मोय ना बुलायो। हम गांव वारे घर वारे को बुलातो तो ,सब आ जाते। जाई बहाने ते शहर घूम आते। लाली ! वो तो ,गुलाम है गयो है। सुधा सब सुनती रही हाँ ,अम्मा ! मैं ,शहर जाकर उसे बताउंगी कि अम्मा नाराज हैं। पर अम्मा का कलेजा ठंडा नहीं हुआ। उन्हें लगा चार पैसे कमाने वाले लड़के बहु गांव में रहने वालों को अपना नहीं समझते।
बीना सोच रही थी कि यही छोटी बातें इन बुजुर्गों का स्वास्थ ख़राब कर देती हैं। इस उम्र में सम्मान की हकदार अम्मा दुखी होकर बैठी हैं। अब ,चाहे उसके पीछे कुछ भी कारण हों। दोनों जॉब करते हैं तो ,अम्मा घर पर बोर ही होंगी ,इसे नहीं समझते। लौटने पर उन्हें आराम चाहिए न कि बैठकर अम्मा से बातें करें। नई पीढ़ी से टकराव की यही बजह हैं। न बुजुर्ग समझ सकते हैं और न युवा लोग। फिर भी अम्मा को सम्मान देना दोनों का फर्ज होना चाहिए।
रेनू शर्मा
No comments:
Post a Comment