Sunday, June 9, 2024

गोबर्धन बिखर रहो है 

 देवदत्त जब गांव से शहर पढ़ाई करने गया तब ,कॉलेज किसी पुराणी बिल्डिंग वाले ही होते थे। जहाँ पानी ,वाशरूम की भी सुविधा नहीं होती थी। घड़ों में पानी रखा होता था ,हेण्डपम्प लगे होते थे ,मास्टर साब बड़े ग्यानी होते थे ,माँ ,सावित्री ने दिल पर पत्थर रखा और देवदत्त को शहर पढ़ाई के लिए भेज दिया। माँ ,गांव में ही रहती थीं। देवदत्त की पढ़ाई जब पूर्ण हुई ,साथ ही नौकरी भी लग गई। अब ,देव के लिए लड़की देखने का सिलसिला शुरू हो गया। 

देव ने अपने सभी भाई -बहनों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया ,माँ को ऐसी लड़की चाहिए थी जो ,गांव और शहर दौनों को देख सके। चाचा -ताऊ के बच्चों को पढ़ाना है तो शहर में घर लेना पड़ेगा ,तो देव ने घर ले लिया। देव के बड़े भाई ने एक जमींदार परिवार की दशवीं पास लड़की देव के लिए देख ली और रिश्ता भी तय हो गया। माँ को बता दिया -लड़की सिलाई ,बुनाई ,कढ़ाई ,खाना बनाना जानती है। घोड़े पर बैठ कर रेस करना भी जानती है। उसके भाई आर्मी में हैं तो बन्दूक भी चला लेती है। 

माँ ,सावित्री के आँगन में मिथिला बहु बनकर आ गई ,देव का घर बस गया माँ ,के लिए यही बहुत था। गांव और शहर दोनो जगह घर का सामान व्यवस्थित किया और जीवन चलने लगा। सब कुछ सस्ता था लेकिन वेतन भी कम होता था। खानदान का खर्चा चलाना मुश्किल होता था। देव की कुछ जिम्मेदारियां अब ,मिथिला ने ले लीं थीं। गांव के लोग परीक्षा देने आते तो घर पर रुकते ,बीमार हो जाते तो ,इलाज यहीं से होता ,मरीज का खाना अस्पताल भेजना भी मिथिला का काम होता। 

शहर का घर कभी छोटा नहीं पड़ा। बहु -बेटे को भी जोड़ लिया जाय तो ,भी बीस लोग तो ,रह ही लेते थे। देव से एक बार माँ ने कहा था -गांव का घर बनेगा ,बालक आते -जाते रहेंगे तो अच्छा रहेगा। देव ने वही किया। बाहर चबूतरा ,आँगन ,चार कमरे ,लाइट ,पंखा सब जुटा दिया। मिथिला भी गांव में रहकर लोगों को स्वेटर बनाकर पहनाने लगी। मिथिला कोई इंस्टीटूट जैसी हो गई ,किसी नन्द की शादी होनी हो तो ,मिथिला क्लास लेगी ,सब कुछ सिखाएगी भी। 

मिथिला के अपने घर वाले भाई -बहन भी शहर ही आते थे। महीनों तक मस्ती करते फिर जाते। देव की गृहस्थी में अनंत रिश्ते समाते जा रहे थे। मिथिला अब ,पहले जैसी  रह गई थी क्योंकि डॉक्टर ने बताया था कि ब्रेस्ट कैंसर है ,माँ तो बिखर  थी लेकिन मिथिला ने हिम्मत दिखाई और सामान्य रूप से जीवन चलने लगा। देव रिटायर होने के बाद आश्रम का काम देख रहे थे ,कभी घर कभी बाहर। देव कभी माया मोह से ग्रसित नहीं हुए ,दो जोड़ी कपडे ,जरुरत का सामान बस यही दौलत थी। 

मिथिला बम्बई जाती खुद से डॉक्टर को दिखा जाती। जब डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए बोला तो ,तुरंत राजी हो गई ,देव के बिना ऑपरेशन करवा लिया। सब लोग शहर आ गए ,मिथिला के शरीर की जमा पूंजी मानो बिखरने लगी थी ,कभी बुखार होता ,कभी कमजोरी लगती। देव बड़े भाई के पास गए थे किसी काम से ,तब मिथिला के हाल जानने के लिए पूछ लिया तब ,देव बोल पड़े ,भाई! गोबर्धन बिखर रहो है ,सब लोग जानते हैं कि गोबर्धन पर्वत के नीचे ही सब ब्रज वाले सुरक्षित थे। उसी आशय के साथ देव अपनी व्यथा बोल गए। मिथिला की भव्यता  लिए इससे ज्यादा सटीक क्या उदाहरण  जाये। देव के लिए उनका घर ,गांव ,दुनिया मिथिला ही थी। उनका पर्वत भी वही थी। मिथिला के दूसरे बेटे की जॉब बाहर थी ,अचानक से वो घर आ गया ,माँ के पास बैठकर पांव दवाने लगा ,मिथिला ने तकिये के नीचे से एक तस्वीर निकाली और बेटे को पकड़ा दी ,ठीक होने पर इसे देखना है ?मिथिला थोड़ी देर में ही इस दुनिया को छोड़ गई। देव का गोबर्धन असल में आज बिखर गया था। 

रिश्तेदार वैसे ही आते रहे जैसे गोबर्धन की परिक्रमा लगाते हैं। वो अजर -अमर हो अपने बच्चों  में समां गई हैं। 

रेनू शर्मा 

























































 

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