Wednesday, June 12, 2024

आँखों में नमी न थी   

 जेबा की पढ़ाई पूरी हो गई थी ,लेकिन उसका मन आर्ट में अधिक लगता था ,खाली समय में पेंसिल से स्कैच बनाया करती थी। कला भी तब सार्थक होती है जब ,कलाकार उसी का हो जाए। जेबा के बस का नहीं था कि स्वत : कुछ कर सके ,कमला ने कह दिया था तुम्हें एकांत ,एकाग्रता और संयम से काम करना पड़ेगा ,देख लो इस विषय में बहुत बाजारवाद भी है। पहले कला का संचय करो फिर प्रदर्शनी लगाओ ,लोगों को जोड़ो ,उसके बाद भी कोई नहीं खरीद पाता। देखो ,जेबा !! एम. ए  ,पीएचडी करो किसी कॉलेज में पढ़ाओ वो ज्यादा सही रहेगा। 

जेबा ,बिना मन के बैंक के एग्जाम की तैयारी करने लगी। सुबह देर तक सोना ,रात को पढाई का नाटक करना ,घर के काम में लापरवाही करना ,यही ढर्रा सैलून तक चलता रहा लेकिन कोई भी परीक्षा पास नहीं हुई। कमला जब भी विवाह के लिए बात करती है उसे टाल जाती है ,दौनों के बीच कुछ खींच -तान चल रही है। न कभी समय आएगा ,न कभी सरकारी जॉब लगेगा और न कभी जेबा माँ -बाप की सुनेगी। एक दिन कमला ने एक फोटो दिखाया ये लड़का है ,इसी से ब्याह होगा तो एक बरस का समय मांग लिया ,कमला इस बीच दहेज़ की तैयारी करती रही। 

जेबा ने अपनी पसंद का लड़का खड़ा कर दिया ,इसी से विवाह करुँगी ,समझने का असर नहीं हुआ। हार कर कमला ने शादी करवा दी। पंडित जी ने विधि -बिधान पूर्वक मन्त्र जाप किये ,सभी शगुन पूरे किये गए ,ढेर सारे चावल माँ की झोली में फेंकती हुई जेबा गाड़ी की ओर विदा होकर बढ़ गई। लोगों के बीच में खड़ी कमला आँखों में आंसू लिए सोचती रही कि मेरे सीने से लग कर फूट पड़ेगी लेकिन उसकी आँखों में कोई नमीं न थी। कमला घर की साफ़ -सफाई में लग गई। दोस्तों को विदा किया। 

रेनू शर्मा 

















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