जब और तब
जब ,बादल घुमड़ते हैं
तब ,दौड़कर नहीं देखती ,
किस रंग के हैं और कहाँ
जा रहे हैं ,बादल।
जब ,आकाश में हवाई जहाज
लाइन बनाकर उड़ता है ,तब
टकटकी लगाकर नहीं देखती।
शाम को जब ,चिड़िया घर
लौटती है तब ,उनकी गप्पें
नहीं सुनती। बरसात की
शाम को ,डूबते सूरज की
रंगीनी जब ,महल ,किले
शहर बनाते हैं तब ,उन्हें
नहीं घूरती। जब ,कहीं दूर
ट्रेन सीटी बजाती है तब ,
छुक -छुक पर ध्यान नहीं देती।
जब ,मैदान पर ,बच्चे
घिर्री मांजा लेकर पतंग
उड़ाते हैं तब ,पतंग नहीं लूटती।
जब ,कंचे के ढेर को चटकाकर
लूटने का मन करता है ,तब
पांव के नीचे कंचा दवाकर
मुस्कराने का मन होता है।
जब ,बच्चे सोचते हैं
माता -पिता कुछ नहीं जानते
तब हंसने का मन करता है।
रेनू शर्मा
तब ,दौड़कर नहीं देखती ,
किस रंग के हैं और कहाँ
जा रहे हैं ,बादल।
जब ,आकाश में हवाई जहाज
लाइन बनाकर उड़ता है ,तब
टकटकी लगाकर नहीं देखती।
शाम को जब ,चिड़िया घर
लौटती है तब ,उनकी गप्पें
नहीं सुनती। बरसात की
शाम को ,डूबते सूरज की
रंगीनी जब ,महल ,किले
शहर बनाते हैं तब ,उन्हें
नहीं घूरती। जब ,कहीं दूर
ट्रेन सीटी बजाती है तब ,
छुक -छुक पर ध्यान नहीं देती।
जब ,मैदान पर ,बच्चे
घिर्री मांजा लेकर पतंग
उड़ाते हैं तब ,पतंग नहीं लूटती।
जब ,कंचे के ढेर को चटकाकर
लूटने का मन करता है ,तब
पांव के नीचे कंचा दवाकर
मुस्कराने का मन होता है।
जब ,बच्चे सोचते हैं
माता -पिता कुछ नहीं जानते
तब हंसने का मन करता है।
रेनू शर्मा
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