Wednesday, June 12, 2024

किनारा  

 बाबा ,अकेले ही विचारों का  

जाल बुनकर किस्से -कहानी 

सुनाते ,जब माँ ,पास आकर 

बैठती तो ,भीतर जाने का बोलते।

 माँ ,भावनाओं ,संवेदनाओं के 

चक्रव्यूह में फंसकर आँखों की 

कोर गीली करती रहती। 

अकेलापन वेदना देता था ,

सबसे मिलने को चहकती थीं। 

आज माँ ,की तरह मैं ,

सोफे पर बैठी, यादों की 

तपन में ,थोड़ी सी हर दिन 

दफ़न हो रही हूँ। 

उम्र का किनारा क्या ?

एक ही रास्ते से गुजरता है। 

रेनू शर्मा 

















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