किनारा
बाबा ,अकेले ही विचारों का
जाल बुनकर किस्से -कहानी
सुनाते ,जब माँ ,पास आकर
बैठती तो ,भीतर जाने का बोलते।
माँ ,भावनाओं ,संवेदनाओं के
चक्रव्यूह में फंसकर आँखों की
कोर गीली करती रहती।
अकेलापन वेदना देता था ,
सबसे मिलने को चहकती थीं।
आज माँ ,की तरह मैं ,
सोफे पर बैठी, यादों की
तपन में ,थोड़ी सी हर दिन
दफ़न हो रही हूँ।
उम्र का किनारा क्या ?
एक ही रास्ते से गुजरता है।
रेनू शर्मा
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