ब्याज
सब कुछ सामान्य ही चल रहा था ,सती -दुति अपनी -अपनी गृहस्थी में मस्त थीं। माँ -बाबा जब तक जिन्दा थे ,गांव जाना होता था ,बहुत अच्छा लगता था। पूरा खानदान गांव में ही रहता है। खेती ही सभी का काम है ,सती के खेत भी बंटाई पर गांव के लोग ही देखते हैं। बाबा जब थे तब दस दिन रहकर आ जाते थे ,माँ भी ज्यादा नहीं रह पाती थी। गांव का घर भी अब बूढ़ा हो चला था। वहां रहने पर ही रख -रखाव हो सकता था।
बाबा ,जब रिटायर हो गए तो ,माँ के साथ इधर -उधर तीर्थ करने लगे ,सती -दुति का घर बस चूका था। दुति शुरू से ही कंजूस थी ,सती से माँ भी उसकी शिकायत करती थी पर हमेशा छोटी बहन है ,ऐसा सोचकर छोड़ दिया जाता था। सती के विवाह पर बाबा ने थोड़ा सा खेत बेचा था। गांव का घर दो कमरे का बनवा दिया था। सती के पति अच्छी जॉब में हैं ,दुति भी संपन्न है। गांव से खबर आई थी कि सती परिवार सहित आओ ,भोले नाथ के मंदिर पर पाठ होगा ,सती ने सोचा अच्छी बात गांव जाकर घर भी ठीक करवा लेती हूँ और हिसाब भी देख लुंगी।
कहीं भी खाना खालो ,कहीं भी सो जाओ ,कहीं भी बहन -भाइयों के बीच मस्ती करो ,यही तो घरों में होता है। उसी समय चाचा ने सती को ऑफर दिया बिटिया !!चाहे तो खेत बेच दो ,घर रहने दो ,दौनों बहने बाँट लेना। तुम भी तो अधिक समय तक गांव नहीं आ पाओगी ,बच्चे तो गांव आना नहीं चाहेंगे ,सोच लो बेटा !! घर और गांव हमेशा तुम्हारा है। अभी हम देख रहे हैं ,कल को ,क्या हो क्या पता। दुति से बात करलो ,बता देना।
दौनों ने निर्णय कर लिया खेत बेचना है ,लेकिन दुति बोल पड़ी -जीजी जो ने बेचा था ,उसके पैसे भी ब्याज सहित चाहिए मुझे। सती हतप्रभ थी क्या सुन रही हूँ ,सती ने गांव का घर खुद खरीद लिया ,एक -एक पाई का हिसाब कर दुति को गांव से विदा कर दिया। माँ -बाबा ने कभी नहीं सिखाया कि रिश्तों की मर्यादा तोड़ दो। जीवन के आखिरी पलों में माँ के साथ घूम पाए थे। सती ने सोचा आखिरी समय पर में ही रहूंगी।
रेनू शर्मा
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