जन्म प्रमाण पत्र
जब स्कूल ,कॉलेज में थे तब ,जन्म दिन मनाने की कोई प्रथा नहीं थी। जबकि एडमिशन के समय कई बार लिखना भी पड़ता था तब भी ,तारीख कोई याद नहीं रखता था। माँ ,कितनों का याद रखती ,कहीं लिखा भी होगा लेकिन याद नहीं। सर्दी -गर्मी ,त्यौहार का ही याद रहता था। हाईस्कूल की मार्कशीट से पता चला कब ,जन्म दिन है। जब ,शादी के लिए पत्री की जरुरत पड़ी तब ,लड़के की पत्री देखकर ही मिलान कर दिया जाता था।
बिना ग्रह -नक्षत्र मिले विवाह भी हो जाते और निभाए भी जाते थे चाहे लड़का मंगली ही क्यों न हो। अभी हम इस वार्तालाप में उलझे ही थे कि बेटी को विदेश में ग्रीन कार्ड लेने के लिए हमारे जन्म प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड गई। पहली जटिल समस्या अब ,हम उस शहर में नहीं रहते ,दूसरी बात माता -पिता स्वर्ग सिधार गए ,वहां कोई नहीं। हम साठ बरस से ऊपर के हो गए लेकिन प्रमाण पत्र के लिए कोई अस्सी -नब्बे साल का व्यक्ति चाहिए जो आपको जानता भी हो। क्या अजब -गजब नियम हैं।
किसी वकील साब से बात की गई ,जरुरत के कागज बनाने में ही साल भर लग गया। फिर बुजुर्ग व्यक्ति का आधार कार्ड भी लाया गया। किसी तरह इन कागजों का इंतजाम किया गया। पता लगा कि उस क्षेत्र के विधायक के हस्ताक्षर भी लगेंगे। है एक माह बाद वकील साब को याद दिलाया गया ,तब पता चला अभी बीस हजार का खर्चा होगा। जबकि नियम है कि कोई भी व्यक्ति कहीं से भी जन्म प्रमाण पत्र ,मैरिज सार्टिफिकेट कहीं से भी बनवा सकता है लेकिन सब हवा की बातें सिद्ध हुई। आज भी प्रमाण पत्र का इन्तजार है।
रेनू शर्मा
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