चीख
आज समय से दवा लेकर सो गई थी ,जब नींद अपने आगोश में घेरने लगी तभी , सामने वाली बिल्डिंग के तीसरे माले से किसी महिला की आवाजें आ रही थीं। महिला चीख रही थी -यार ! अब ,नहीं करुँगी फोन ,बात नहीं करुँगी ,हो गया अब ,बस भी करो। पुरुष लग रहा था ड्रिंक किये था। उसने दो चार थप्पड़ महिला को लगा दिए ,वो बार -बार माफ़ी मांग रही थी ,लगातार अपना पक्ष रख रही थी फिर भी पति ने कुछ नहीं सुना। ऐसा लगा पुरुष कहीं जाने की बात कर रहा था और महिला उसे रोक रही थी।
पहले मुझे ऐसा लगा मैं ,सपना देख रही हूँ शायद ,लेकिन फिर महिला की आवाजे तेज हो गई। मैं ,झट से उठी बाहर देखा ,बालकनी में जाकर देखा कुछ समझ नहीं आया। तभी फिर से सुनाई दिया यार माफ़ कर दो। लाइट जलाकर छोड़ दी ,चाय बनाने का सोचा। महिला लगातार बिलख रही थी। अभी चार बज रहा था एक सन्नाटा सा फ़ैल गया। किसी के तड़फने की आवाज मेरे कानों को चीर रही थी। रात के अँधेरे में कोई औरत ही क्यों चीखती है ? सारी कहा -सुनी रात को ही क्यों होती है ?
अपने घरों में सब पड़े रहते हैं ,कोई लाइट भी नहीं जलाता ,लड़ने वालों की घंटी ही बजा दें। शराबी कभी अपनी औकात में नहीं रहता ,लांछन महिला पर ही लगाता है। अभी तक महिला के सिसकने की आवाज आ रही है ,मन कर रहा है अभी जाऊं और उसे सीने से लगा लूँ। मैं ,समझती हूँ वो किससे अपना दर्द बांटे ? किसे रात को खबर करे ,कौन उसकी सुनेगा ? दोस्त तो बहुत होते हैं लेकिन कोई ऐसा भी तो हो जो ,कभी भी आकर खड़ा हो सके। खुद का ही मरना और जीना होता है।
जानती हूँ ,रात का ये रहस्य कभी जिन्दा नहीं होगा। जाने कितने वादे होंगे और शपथ ली गई होंगी ,महिला की चीख भीतर तक समा गई है। फिर कभी अपनी नींद इस तरह गवाना नहीं चाहती।
रेनू शर्मा
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