मिलने की ख़ुशी
यशोदा आज सुबह से आसमान सर पर उठा रही है ,रानी उठ जा ,सुबह हो गई ,देख कितना उजाला हो गया ,उर्मिला आती होगी ,कह रही थी सुबह आएगी। उसके साथ समधी -समधन भी आएंगे ,उठ जा रानी !! रानी ,अलसाई सी उठकर देखती है क्या आई !!अभी तो सात बजा है ? यशोदा तो बस रानी को उठा हुआ देखना चाहती है कि उठ जाएगी तो काम भी करने लगेगी। यशोदा ने बेटे को भी उठा दिया ,उठ जा छोटे ! चादर बदल दे ,आज सोफे के कवर भी बदलने हैं। आई !! हो जायेगा ,क्यों चिंता करती हो ?बेटा जा बर्फ भी लानी होगी।
आई की चिंता ने सभी को परेशान कर दिया। यशोदा फिर रानी के पास चली गई ,वो नहाकर साड़ी पहन रही है ,रानी मुझे बता क्या सब्जी कटनी है ? आई !!अगर वे लोग नहीं आये तो ? अरे ! नहीं बोला है तो आएंगे। छोटे !जरा उर्मिला को फोन तो लगा ,कहाँ तक पहुंचे ? दीदी बोली अभी सब तैयार हो रहे ,आते हैं तीन घंटे लगेंगे। अरे ! उसे बोलो जल्दी आये ,ठीक है आई। रानी ने बेसन यशोदा को दे दिया ,आई कोई गुजराती डिश बना रही है। छोटे ! कुछ फल भी ला देना ,साब सरकारी अधिकारी हैं। हाँ आई ला दूंगा।
आने वाले कहाँ बैठेंगे ,कहाँ खाएंगे सभी चिंता आई संभाले हुए है। आई !!अभी दीदी को आने में एक घंटा लगेगा। रानी !दाल बन गई क्या ? माँ ,पहले यहाँ बैठो ,ठंडा पानी दे गौरी जरा दादी को। मैं ,हूँ न ,सब देख लूंगा आई ! आप चिंता न करो। सब हो जायेगा उनके आने तक। चलो शरबत बना देता हूँ। बेटा ! हमारा पुराना घर है वे लोग शहर में रहते हैं ,तो क्या हुआ ? आई वे ध्यान भी न देंगे घर पर। अमित की बहु भी तो है ,हाँ वे लोग आपसे मिलने हैं ,न कि घर से। यशोदा को बिठा दिया। तभी छोटे ने बताया आई !!दीदी आ गई ,माँ को लगा अरे ! मैं, तो बैठी थी ,दरवाजा क्यों नहीं खोला ? यशोदा के गले लगकर सभी ने आशीर्वाद लिया। समधी जी ने चाय पीने का बोल दिया ,आई को लगा खाना कब खाएंगे ?
सभी खुश थे ,बहु रसोई में रानी का हाथ बटा रही थी ,आई के पास समधन बैठी थीं ,नई पुरानी बातें हो रही थीं। आई का पूरा ध्यान खाने पर था कि समय से हो जाय। तभी ध्यान एक फोटो पर चला गया ,ये छोटू के बाबा हैं ,बहुत स्मार्ट थे। हाँ ,लगते हैं। बड़ी मुश्किल से बच्चों को पाला है ,रिश्तेदार घर पर हिस्सा मांगते हैं इसलिए नहीं बनाया। आई ने यह बात भी साफ़ करदी। ऐसा लगा कबसे समधन का इन्तजार हो रहा था ,मानो बिछड़ी हुई दो सहेलियां हों। खूब बातें हो रही थीं। बरसों की गठरी आज खुल गई थी। यशोदा की आँखें बार -बार गीली हो रही थीं।
जब शाम को सभी चलने का समय हुआ तब ,सभी ने रंग लगाकर विदाई ली। यशोदा ने सभी को अपने हाथों से शगुन दिया ,बहुत खुश थी। मिलने की ख़ुशी आँखों की कोरों से बह रही थी।
रेनू शर्मा
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