इस बार
एक बार, रिश्ते को नकार
दिया था ,लेकिन
समय की परतें उसके ,
आस -पास खुलती गईं।
कभी ख़ुशी ,कभी गम के
निशान तलाशता रहा।
अब ,रिश्ते को कसौटी पर ,
घिस रहे हैं। कभी सोना
कभी लोहा ,बताते हैं।
कश्मकश के दोराहे पर
खड़े ,खुद ही खुद से ,
इस बार ,रिश्ता तोड़ रहे हैं।
रेनू शर्मा
दिया था ,लेकिन
समय की परतें उसके ,
आस -पास खुलती गईं।
कभी ख़ुशी ,कभी गम के
निशान तलाशता रहा।
अब ,रिश्ते को कसौटी पर ,
घिस रहे हैं। कभी सोना
कभी लोहा ,बताते हैं।
कश्मकश के दोराहे पर
खड़े ,खुद ही खुद से ,
इस बार ,रिश्ता तोड़ रहे हैं।
रेनू शर्मा
No comments:
Post a Comment