Saturday, June 22, 2024

नई पीढ़ी  

 लेखा आज सुबह से चुप है ,हर समय चहकने वाली ,लम्बी मुस्कान बिखराने वाली पचपन की उम्र में बाइस की सी दिखने वाली अभी कुछ बूढी सी लग रही है। हंस तो रही है लेकिन कोई कहानी सी उसके चेहरे से रिस रही है। मैं ,लपककर उसके पास गई और डस्टिंग वाला कपडा उसके हाथ से छीनकर ,अपने पास बिठा लिया। पहले चाय पी ले फिर काम करना। मुझे बता दे कुछ करूँ तुम्हारी हेल्प ,हाँ ,तुम ही कर सकती हो। 

हम लोग देर तक चाय पीते रहे लेकिन लेखा चुप ही रही ,विशाल ऑफिस चले गए जोत भी स्कूल चला गया ,अब तो ,अम्बिका ही बची थी जो काम करके ही जाएगी। लेखा को बाहर ले गई ,देखो लेखा मैं ,कल चली जाउंगी फिर फोन करके मुझे दुखी मत करना। अभी क्यों नहीं बताती हो क्या हुआ ? अम्बिका वहीँ पोहा ,चाय लेकर आ गई। कुछ नहीं यार !! मुझे लगता है आज -कल बच्चे आजादी की दुहाई देकर माता -पिता को बहुत जलील करते हैं। मैं ,हफ्ते भर पहले नीला के पास गई थी वो ,मेरे चाचा की बेटी है। उसी दिन राहुल का जनम दिन भी था सोचा ,घर का खाना मिलेगा ,पुराणी यादें ताजा होंगी ,लेकिन वहां न तो नीला खुश थी न राहुल की पत्नी। बेटे बहु तो ऑफिस चले गए ,नीला ने बता दिया था कि लेखा मौसी आ रही है तो हम घर पर ही खाना बना लेंगे। नीला ने मेरे स्वाद का खाना बनाया था। जो हम बचपन में खाया करते थे। बहुत मजा आया। 

शाम होते ही राहुल और रेखा के दोस्त घर आने लगे जो नीला को भी नहीं पता था। नीला भी हैरान थी ,हम लोग अपने कमरे में ही थे ,बाहर हॉल में पार्टी चल रही थी ,जाम छलकाए जा रहे थे ,खाना ऑर्डर किया जा चुका था। हम लोग सोच रहे थे कि परिचय के लिए तो बुलाया ही जायेगा लेकिन नहीं। नीला गई और दो प्लेट खाना ले आई जो अम्बिका बनाकर गई थी। हम लोग बातें करते हुए ही सो गए। सुबह ही सब लोग जा रहे थे। 

मैं ,सुबह उठी तब राहुल उठ गया था ,उसे विष किया तो उसने ऊपर देखा भी नहीं, टेबल पर केक के टुकड़े पड़े थे ,रेखा सफाई कर रही थी. चाय बनाकर मैं नीरा के पास आ गई। उसकी आँखें सजल थीं ,मैं उसे नई पीढ़ी की बात समझा रही थी। लेकिन दुःख इस बात का था की माँ को कमरे में बंद कर तुम मौज कर रहे हो ,क्या उसका मन नहीं कि सबसे मिले बात करे। नीला उखड गई थी मैं ,अपने गांव में ही खुश थी। नीला ने अपना सामान रख लिया और बोली -तुम भी मेरे साथ चलो बस में बिठा दूंगी। गांव में आज भी लोग मेरे पैर छूने झुकते हैं। 

मैं ,नीरा की बैचेनी को समझ रही थी। हम दोनो गांव आ गईं ,वहां से मैं ,यहाँ आ गई ,तभी से मेरी हालत ख़राब है। विशाल से भी कुछ नहीं बता पाई। शोभा चलो ,थोड़ा खाना खा लो। मैं सोच रही थी कि मुझे बच्चों के पास दिल्ली जाना चाहिए या नहीं। 

रेनू शर्मा 








































 

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