Sunday, June 23, 2024

 चटकते रिश्ते  

 शारदा सुबह से अपने कामों को निबटा रही है ,कभी झूले के पास खड़ी हो मुस्करा जाती है ,कभी उसकी आँखों के किनारे गीले होने लगते हैं। आज उसकी सहेली मीरा आने वाली है। पिछले तीस बरस से वे अलग ही रह रही हैं ,दोनो के शहर भी अलग हैं। मीरा कभी बच्चे ,कभी पति और घर की उलझन में इतनी खोई है कि अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाती। जिंदगी मशीन ही बन गई है। 

पति से पहले ही बता दिया है ,मुझे पूरा दिन चाहिए मीरा के लिए ,सुबह से उसकी पसंद का खाना ,भरवां भिंडी ,तली हुई अरबी ,आलू टमाटर की सब्जी ,खीर पूड़ी ,चटनी बनाने में लगी है। 

अभी पाठ करना शुरू ही किया था कि घंटी बज गई ,भागकर गई ,देखा शिफॉन की साडी में मीरा बेहद खूबसूरत लग रही थी। सीने से अलग होते ही पूछ लिया -जीजू हैं या ऑफिस गए ? बैठते हुए बोल पड़ी ,यहीं हैं ,अभी बुलाती हूँ ,चल बता ,हमारे शहर कैसे आना हुआ ? बातें चल ही रहीं थीं कि देव चाय लेकर आ गए। नमस्कार मीरा जी !! कैसी हैं ? शारदा जी ने सुबह ही बोल दिया था घर पर रहना है तो ,काम करना पड़ेगा। अरे !नहीं तुमसे मिलना था तो ,नहीं गए। आपका वो ,छलिया दोस्त कैसा है ? अरे ! वो अब नहीं रहा। ओह --आपकी शादी में उसने बहुत मजाक किया था ,हाँ समय निकलते देर नहीं लगती। 

यहाँ भी समय निकल ही रहा था, दोपहर के खाने का समय हो गया था। देव ने खाना लगाने में हेल्प की ,देर तक खाने का लुत्फ़ लेते हुए मीरा और शारदा बाहर झूले पर आकर बैठ गई। मीरा ! तुम कुछ दुबली लग रही हो ? हाँ यार !! कुछ दिनों से फ़ालतू ज्यादा सोचने लगी हूँ। नींद की समस्या होने लगी है ,कभी रात भर जागते हुए निकलती है। सुबह फिर वही काम ,बच्चे अपने में मगन ,पति को काम से फुर्सत नहीं। हाँ ,ये तो ,सभी के साथ होता है। दिल्ली जाना कब हुआ ? गई थी जब ,विहान और अहिका को बेटा हुआ था ,तीन महीने रही लेकिन शारदा !! अपना घर ,अपना ही होता है। बहु बेटे के पास भी अच्छा नहीं लगता। जिन बच्चों को हमने पाला वे कहते हैं आपको बच्चे को पकड़ना नहीं आता ,आप कुछ नहीं कर सकती हो ,भाई ! तो सम्भालो अपना घर ,हम यहाँ क्या कर रहे हैं। 

अच्छा किया , इस उम्र में क्यों दुखी होना ,मस्त रहो जीजू हैं न तुम्हारे साथ ,चाय फिर मिल चुकी थी। यहाँ भी कौन सी शांति है बाप -बेटे की चलती रहती है। बात ही नहीं करते आपस में ,पार्टी करने से मत रोको ,टोको मत ,शादी नहीं करनी। जब तक जॉब  था मेरा ,तब तक सब ,ठीक था ,अब घर पर रहकर पागल सी हो गई हूँ। मीरा बोल रही थी जीजू ! मुझे लतिका के घर छोड़ दो ,उसे भी सालों से नहीं मिली हूँ। देर तक सभी हँसते रहे ,मीरा सोच रही थी दरकते रिश्ते अब ,सँभालने ही होंगे। 

रेनू शर्मा 






































No comments: