Monday, June 17, 2024

समय का बुलबुला 

  समय या काल को मापना,
 असंभव है। पृथ्वी पर प्राणी ,
प्रकृति ,पंचतत्व सभी कुछ 
एक बड़े बुलबुले में समाये हैं। 
हमारा बचपन ,यौवन ,वृद्धावस्था 
स्मृतियाँ सब चक्रवात से घूमते हैं। 
हमारा जीवन ,वातावरण ,मौसम 
पृथ्वी के अयन के साथ चलायमान हैं। 
बुलबुला फूटता ,बिगड़ता ,बनता रहता है। 
हिम पर्वत ,पहाड़ ,गुफाएं ,धरती के भीतर ,
धरती की धुरी पर घूमने जैसा है ,
तभी योगी ,सन्यासी वहां तपस्यारत 
रहते हैं। किसी भी परिवर्तन से मुक्त। 
विशाल वृक्ष ,प्राचीन खंडहर ,मंदिर ,दुर्ग 
झरने ,नदियां ,कुंड ,झील सब अमर होते हैं। 
धूल का हर कण ,समय की गणना 
बता सकता है। कण -कण में ईश्वर 
तभी तो संभव हैं। यही समय है ,
काल है और महाकाल है। 
रेनू शर्मा 






















 

No comments: