Friday, June 21, 2024

चेतना एक अनुभव 

  चेतना को जानने के लिए बुद्धि ,मन ,मस्तिष्क ,ज्ञान जैसे हजारों शब्द हमारे जहन में आने लगते हैं। चेतना पर विचार ,विमर्श ,मंथन तो अर्वाचीन काल से चल रहा है. वेदों ,पुराणों ,श्रीमद भागवत गीता से ज्ञान पाकर हम अपनी चेतना को समझ सकते हैं। चेतना हमारी आत्मा की चैतन्यता है ,हमारी ऊर्जा है ,हमारी उपस्थिति का अहसास है। प्राणायाम या ध्यान की गहराइयों में हम जो ,अनुभव करते हैं ,समझते हैं या संसार चक्र का ज्ञान पाते हैं ,वही चेतना है। हर प्राणी और प्रकृति चेतना से व्याप्त है। 

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड चैतन्य है ,हम हर पल पृथ्वी माता के साथ एक नए सफर पर जा रहे हैं। पृथ्वी माता ही हम सभी को अनुभव कराती हैं कि हम अनंत यात्रा पर चल रहे हैं। यही चेतना की समझ है। हर व्यक्ति की चेतना का स्तर भिन्न है। प्रात : काल आकाश और ईश्वर की गतिशीलता को नमन करना चाहिए। हम अंतरिक्ष की गहराइयों में कहीं घूम रहे हैं। श्री गुरु ही आपकी दृष्टि को विस्तार देते हैं। निरंतर अभ्यास हमारे विचारों को शून्य करता है या कहें कि मन की चंचलता कम करता है।

ऋषियों ,योगियों ने चेतना ,पदार्थ और शून्यता को समझा और अनुभव किया। विज्ञान उन्ही सिद्धांतों को खोज रहा है। चेतना अनन्य सौंदर्य से ओत -प्रोत है ,विचार बदलने भर का समय होता है तभी ,चेतना बदल जाती है। हजारों सूर्य की उपस्थिति का अनुभव व्यक्ति को उसी में डुबोना चाहता है। समय अभी सघन अभ्यास चाहता है। इस अखंड चेतना का दर्शन सम्पूर्ण प्रकृति को होता होगा चाहे गाय हो ,वृक्ष हो ,पक्षी हो। चेतना ही ब्रह्म है ,वही अद्देत है ,वही ब्रह्माण्ड की शक्ति है। 

चेतना ही हमारे व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करती है ,इसका झणिक दर्शन ही आरम्भ है। असीमित ,व्यापक ऊर्जा का संग्रह ही चेतना है जो ,हमारे मस्तिष्क का सञ्चालन करती है। मस्तिष्क ही ब्रह्माण्ड है ,अपनी चेतना का साक्ष्य पाकर ब्रह्माण्ड दर्शन कर सकते हैं। श्री कृष्ण ने अपनी माँ को मुंह के भीतर ही ब्रह्माण्ड के दर्शन करा दिए थे। एक और प्रमाण है जब ,बाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता देवी को अग्नि परीक्षा के लिए बाध्य जाता है ,चरित्र की सुचिता दिखाने के लिए तब ,धरती माता स्वयं शेष नाग पर विराजित होकर प्रकट होती हैं और सीता को पुत्री सम्बोधित करती हैं ,अपने साथ नागलोक होकर ,पृथ्वी लोक ले जातीं हैं। उस समय के सभी व्यक्तियों ने साक्षात् पृथ्वी देवी के दर्शन किये होंगे। 

बात चेतना की हो रही थी , हमारा औरा जितना मजबूत होगा हमारी चेतना उतनी ही जाग्रत होगी। अपनी सोच का विषय सात्विक ही रखना होगा। गहन विषय है ,अभी के लिए इतना ही। 

रेनू शर्मा 

















 

















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