Friday, June 21, 2024

मणि पुरी अस्मत 

  जब मेरा जन्म हुआ तब ,माँ दर्द से कराह रही थी ,औरतें दाई को बुला लाइ थीं। कोई पानी गरम कर रही थी ,कोई मिटटी बांस से बने घर में पर्दा लगा रही थी। पुरुष तो हमेशा घर से बाहर ही रहता है। कभी खेत पर ,कभी काम पर ,कभी बकलोल करने में समय निकाल देगा। मेरा जन्म हो गया ,बाप नशे में चूर पहाड़ की सीढियाँ चढ़ता आ रहा था ,कितनी बार कहा नशा न किया कर, जितना कमाया सब खर्च कर आया। 

माँ ,गांव में ही बांस चीरकर पतली धागे जैसी डोरियां बनाकर ,पहाड़ के ऊपर एक बंदा आता था उसे बेचती थी ,माँ के हाथ पर कुछ पैसे रख देता था। माँ के साथ उसकी बूढ़ी सास भी रहती थी जो ,धान के खेत पर काम करती थी। माँ ही घर का खर्चा करती और झोंपड़ी को ठीक भी करती थी। गोपू माँ का भाई कभी -कभी आता था ,उसके हाथ में कभी गड़ासा होता ,कभी बन्दूक। माँ ने उसे समझाया था ,इधर कभी आया तो पहाड़ से नीचे धक्का दे दूंगी। तबसे गोपू को नहीं देखा। 

गोपू को जब पुलिस खोजती तब, नीचे माँ के पास छुपने आता था। कोई कहता मैतई लोगों से मिल गया है ,कोई कहता नशे का धंधा करता है। मेरी माँ दबंग थी ,उसने शहर जाकर एक संस्था बना ली जो ,कामकाजी महिलाओं की संस्था थी। घर से बांस की डलिया बनाती ,बहुत सारे छोटे आयटम भी बनाती थी। संस्था को बेचती फिर आगे संस्था दूसरी जगह बेच देती। माँ को पैसा मिलता था। हमारा गांव अब ,कामकाजी गांव बन गया था। धान की खेती ,अनन्नास ,नीबू सब बड़े लोगों का काम था। 

धान की खेती के साथ ही लोग अफीम की खेती भी करते थे ,मां और बाप जैसे हजारों लोग यही अनैतिक व्यवसाय करने लगे। माँ सबको गालियां देती थी। उसकी कैउन सुने जब ,सरकार ही नहीं सुनती। एक बार माँ संस्था का सामान देने गई तो ,वहां पुलिस बैठी थी क्योंकि साथ में लोग अफीम भी लाते थे। माँ से भी सवाल -जबाव हुआ ,वापस आ गई। मैं ,चौदह बरस की हो गई हूँ। पढ़ने के लिए ऊपर स्कूल जाती हूँ ,कभी माँ का सामान भी संस्था पहुंचा देती हूँ। मेरा नाम पोना है ,माँ कह रही थी मैतई लोग भी तो ,बाहर से आकर बसे हैं ,पुलिस उनको संरक्षा देती है ,हम कुकी लोगों को नहीं। पुलिस उन सबके बीच पिस गई है। दोनो लोगों से अफीम पकड़कर सरकार ले जाती है ,पैसा अलग जाता है। जो भी ,पकड़ा जाता है उसी समुदाय के लोग मारकाट मचा देते हैं। एक दूसरे पर आरोप लगते हैं। पुलिस किसी की तरफ नहीं बोलती। जो धान की खेती करते थे अब ,हथियार की कर रहे हैं। बनकर बनाकर  हैं। 

माँ ने मेरा जाना बंद कर दिया है। कल माँ सामान लेकर ऊपर आई थी ,रात हो गई वापस नहीं आई तो हम लोग ,हथियार लेकर ऊपर आये। शाम तक माँ को खोजते रहे जब मैतेई लोगों को पता चला तो हम जंगल में छुप गए। फिर भी हमारे ऊपर हमला किया ,मुझे और काकू को खींच लिया ,मैं ,घायल शेरनी सी घिसटती रही लेकिन हथियार और हवस के सामने पस्त हो गई। सभी ने मुझे रोंदा वहीँ पटका और जब पुलिस की गाड़ियों की आवाज सुनी तब भाग गए। 

मुझे अस्पताल लाया गया ,हमारी कौम के कारण मुझे बेपर्दा किया गया। औरतों के बीच मुझे जलील होना पड़ा। माँ की लाश को पुलिस ने जंगल से खोजा ,एक दूसरे समुदाय ने जो हो सकता था ,वह कुकर्म किया। जो मिला बस ,गाड़ी घर सब आग के हवाले कर दिया गया। युवा किसी  सुनते उन्हें तो ,नशा और पैसा सब चाहिए। गांव के एक व्यक्ति ने माँ के बारे में सब बताया। बाप और मामू तो मर खप गए होंगे ,क्यों बच गई ? स्त्री की कठोरता तो देखिये ,बर्दास्त की इंतहां होने पर भी बच गई। मैं मणिपुर की अस्मत हूँ। मेरा तो ,कोई कसूर नहीं था। कब तक ,महिलाएं ही आहुति के लिए तय की जाती रहेंगी। हरी -भरी दुनियां में तितली सी उड़ती ,मैं कब ,सुरक्षित हो पाऊँगी। 

रेनू शर्मा 


























































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