Saturday, June 22, 2024

शायद ऐसा होगा ? 

  छटपटाहट उस ओर भी है ,
धीमी सी आहाट शकून 
दे जाती है। शब्दों की शून्यता ,
तैरती है ,हर तरफ 
पल भर में ,भूचाल सा ,
धमक जाता है। वीराना सा 
पसर जाता है ,आस -पास 
शब्दों की ध्वनि नादित होती है। 
हम ,जकड़े हुए हैं सांस चलने तक ,
ये बसेरा ,तवायफ खाना होगा ,
जाम छलकेंगे ,भटके लोगों की 
सराय बनेगा। जो ,दूसरों पर 
अंगुली उठाते हैं ,उनका 
तमाशा यहीं बन रहा होगा। 
तुम ,मेरे वजूद के बिना ,
जीना चाहते थे , जहाँ तस्वीर भी 
दफ़न कर दी गई हो।
 शब्दों के हेर -फेर ,उच्चारणों से 
मुक्ति चाहते हो। तुम्हारे 
अपनों का तिलिस्म हो ,
इच्छाधारी सपनों से जगाने 
कोई ,नागिन न हो ?
फिर से कुछ छूटा सा लगता है ,
शायद ऐसा न हो। 
रेनू शर्मा 
























 

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