शायद ऐसा होगा ?
छटपटाहट उस ओर भी है ,
धीमी सी आहाट शकून
दे जाती है। शब्दों की शून्यता ,
तैरती है ,हर तरफ
पल भर में ,भूचाल सा ,
धमक जाता है। वीराना सा
पसर जाता है ,आस -पास
शब्दों की ध्वनि नादित होती है।
हम ,जकड़े हुए हैं सांस चलने तक ,
ये बसेरा ,तवायफ खाना होगा ,
जाम छलकेंगे ,भटके लोगों की
सराय बनेगा। जो ,दूसरों पर
अंगुली उठाते हैं ,उनका
तमाशा यहीं बन रहा होगा।
तुम ,मेरे वजूद के बिना ,
जीना चाहते थे , जहाँ तस्वीर भी
दफ़न कर दी गई हो।
शब्दों के हेर -फेर ,उच्चारणों से
मुक्ति चाहते हो। तुम्हारे
अपनों का तिलिस्म हो ,
इच्छाधारी सपनों से जगाने
कोई ,नागिन न हो ?
फिर से कुछ छूटा सा लगता है ,
शायद ऐसा न हो।
रेनू शर्मा
धीमी सी आहाट शकून
दे जाती है। शब्दों की शून्यता ,
तैरती है ,हर तरफ
पल भर में ,भूचाल सा ,
धमक जाता है। वीराना सा
पसर जाता है ,आस -पास
शब्दों की ध्वनि नादित होती है।
हम ,जकड़े हुए हैं सांस चलने तक ,
ये बसेरा ,तवायफ खाना होगा ,
जाम छलकेंगे ,भटके लोगों की
सराय बनेगा। जो ,दूसरों पर
अंगुली उठाते हैं ,उनका
तमाशा यहीं बन रहा होगा।
तुम ,मेरे वजूद के बिना ,
जीना चाहते थे , जहाँ तस्वीर भी
दफ़न कर दी गई हो।
शब्दों के हेर -फेर ,उच्चारणों से
मुक्ति चाहते हो। तुम्हारे
अपनों का तिलिस्म हो ,
इच्छाधारी सपनों से जगाने
कोई ,नागिन न हो ?
फिर से कुछ छूटा सा लगता है ,
शायद ऐसा न हो।
रेनू शर्मा
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