Saturday, June 22, 2024

स्पेस  

 घने बादलों के ऊपर कहीं दूर 
कड़कड़ाती बिजली की 
तीव्र चमक ,तेज हवाओं का 
सैलाव ,हमें कहीं दूर ,
ले जाना चाहता है। 
डग -मग  होते से हम ,
अंतरिक्ष में भटक गए से 
लगते हैं। पक्षी सा वायुयान 
रास्ता भूल गया सा लगता है। 
दूर छितिज में ,समां रहे हैं हम ,
आकाश तारों से भरा है ,
पृथ्वी से दूर ,वीराने की यात्रा 
एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर ,
निर्बाध चल रही है ,पृथ्वी की प्रकृति 
अनंत में विराजित है। 
तारों के  पार स्पेस ही ,
नया घर सा लग रहा है। 
रेनू शर्मा 
















 

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