Saturday, June 22, 2024

दो पहर ठहर गई  

  पच्चीस दिसंबर की शाम जब ,धुंधलका  सा ओढ़कर प्रकृति की गोद में सोने जा ही रही थी ,तभी फोन की घंटी एक चिड़िया जैसी चहकी ,खोलकर देखा तो,प्यारा सा निमंत्रण था  ,कल सुबह के बाद हम श्री मति उषा किरण खान ,पदम् श्री से सम्मानित के साथ समय बिताएंगे। मेरी बांछें खिल गईं क्योकि मैं ,उनसे मिलकर बहुत कुछ सीखना चाह रही थी। जल्दी से तैयार होकर पति देव को आदेश दिया कि मुझे छोड़ दीजिये। बंगले का पता और लोकेशन भी मिल गई। सरपट पंख लगाकर मेरा दिल काबू में नहीं था ,गेट पर छोड़कर पतिदेव चले गए। 

मैं ,गौरैया सी फुदकती सी वहां पहुँच गई ,वहां उषा जी ,संतोष जी ,सुमिता जी और उषाकिरण जी उपस्थित थीं। जब ,अभिवादन की प्रक्रिया संपन्न हुई तब ,मुझे लगा आज मैं ,खुले आकाश के नीचे ,प्रकृति के पास जहाँ -तोते ,कबूतर ,चिड़िया ,तितली ,भँवरे सब स्वच्छंद विचरण कर रहे थे। अभी उस वातावरण से परिचित हो ही पाई थी कि सुगन्धित ,स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ जैसे -आंवला अचार ,लिट्टी -चोखा ,चटनी को उदरस्त करने का आदेश हुआ। रसभरा मिष्ठान शगुन लेकर आईं। मैं ,सोच रही थी हम चर्चा -परिचर्चा करने आये हैं या स्वादिष्ट व्यंजन से मन और आत्मा तृप्त कर रहे हैं। 

अभी प्लेट्स हट भी नहीं पाई थीं कि फोटो लेकर यादों को अमर करने का सिलसिला शुरू हो चुका था। सभी ने अंतरात्मा की तृप्ति तक फोटो खींचे। कुछ समय उपरांत ही तीनों देवियां  गईं। सौभाग्य से मैं ,उषा जी के साथ अकेली हो गई ,पति देव को आने में समय था तो ,झट से अपनी मुश्किलें सुलझाने मैडम के पास हो ली। उषा जी कुछ थकी हुई सी लग रहीं थीं उसके बाद भी वे ,मेरे साथ बैठी रहीं। उसी बीच कहानी उन्हें सुना दी ,मैं ,जानना चाहती थी कि मेरा रास्ता सही है या नहीं। उन्होने खुलकर बोला तुम अच्छा लिखती हो ,यूँ ही लिखती रहो। उसी पल से मैं ,उनकी शिष्या बन गई। पता नहीं ,इस रिश्ते की आहाट उन तक ,पहुंची या नहीं। 

थके हुए परन्तु तेजयुक्त चेहरे पर उनकी आँखों की गहराई से एक चमकीली रौशनी मुझ तक आई थी। मैं ,भाव-विभोर हो गई। उस पल का स्पर्श मुझे प्रेरित करता रहेगा। वे कह रहीं थीं मिटटी से जुडी आत्मा की आवाज को अभिव्यक्त करती रहो। निरंतर प्रयास करो। बाहर गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया और दो पहर ठहर कर मैंने श्री मति उषा किरण खान जी से विदा ली ,जो हमारा आखिरी मिलना साबित हुआ। 

रेनू शर्मा 


























 

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